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________________ तिच्या मार सम्पन्न मानदे त नाक हार जीतुराहारु से चेयर धर्मविरुपसण् सम्पद चैत संप्रजिते हिताय कारण एानावण्केज को लोपलो ६५००६ ज्वाला कलीक जाली जगमोहिमेन्केल ज्ञाननिष्केणारा केरानी कारिणीत्रका रेजोले बामाले गडागजी हा संसारधारमिम शोर पारे घर जोयं दिजातिले सुनेने माणे एसमा दिनूता ताते याच पावे संसार समुद्रयकादयो०१०च्ने मर्मनाकारपहारग पिणारे हवो जिस मार्गानीवनात विदित निविदेकी 20 स्योनरू कियानो जलकुमार रुम कहे के पिच्या दादानाएहा मानवी जगमाहि० देश अरुपणकरते न करें मजे जे करसंसार जी विकार नीर प्रतिभा से पूर्णमा०तिकु समातियोो नू० सहत ऊताः॥ जैबे मंसम्म तेच कृति जेजे तार तिप्पाणस्वतिला ५० जेगर दिया एमिक्संति जेया सहादिउल समज पसरण्य परामतीर श्रमहो अयुष्य मंत्र एक ही याते दिविपरीतमतिरूति जाली एक्दनन मनलाम सरायोजनाये सम्बीन्मने वो रोधर्मसरी बोकि एक प्रेमीनमा राराकुजेत स्वोमिनी ममो सरावणी श्रमाती ती मातरा तिहस्तीनाद समयोजकले पारस की कीमऊ एक क कारण मानलिऐ एता सके ५६ जनगनप्पल कारने घर एक नावर जीवनानंतर जी ने अने मागमजीर वेतेने दिलसे थी ते निष्णामाने वपेते आपसे आजीरका कायको बेले पण या सादोपे उपनो र परि मरतोकीएको पञ नैकजीव हत्येः॥ दिजोए-चरणीच्या उदात्मंतंत्र समेमनाएब अहान नदि परियासमेवार सेवशेषच्यने राजानी याने ०० अर्थतरून मासे कर सब्बरसव्रसद् बालापमुपकरी म वसिएन्एके माहाकायाहस्ती मा० श्री विएसीनेश ५७ सदरेला दियए गमेगं वाले मारे उमहाग यंत्र से साण जी वालद
SR No.650004
Book TitleSuyagadanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1877
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size69 MB
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