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________________ पर ॥ बिल बालक बूढै ॥ नपकरै विपरे ॥ रा॥२॥ कनता के दनी ॥ हिमै आपण दायरे ॥ रात्रि का है। मलै ॥ चिण्पा ता लै जाय रे ॥ ३॥ ॥इक बलवे तवसे ॥जा मंत्र टारे । राम ने वट पाक से प्राज ताजा घरे पिक के ईको मरे । किदां वै मैनब सैति को न विजारौ गेमरे॥॥॥॥ पर घर से घायायो । । वारि नीचितचादरे ॥ राजा को बोलै घर छलीता कुमारै घरमा का र मा चार रे ।। रात के रैनचले के दिन जो ॥ ॥ के ही मुस्या के मारिया के टयां नें माशा ईनी बरे । ररा ॥ जा ये कर मुका प्रति ॥ महनदी विसिषरे ।। नव से कन्याले गया। जा ऐपा जातीक रूप रतिष हिजूरे ॥ शपना र विना कि हो जई यैसे निज माथरे ॥ चा वेधक चार ता नावैकद नै हाथ रैसि देवषवरकरं तामु या धकीमा म रे ।। ११ ।। करै ॥ रात्रि कच चरै वलीचा ॥ बैगर ॥ विवदिवि चारै बू ६ रे ॥ चिद तत तरुक रहव पकमिज किए मामरे ॥ दामरेरित वन ती एक लेक से नेकरे ॥ वैचुप में विनस है कर्षक रोग बदी तरे ॥ दात्र या टाकरै तमसु६ ॥ १३ ॥ ॥ रथ का मुद्रमै के हो चसै माथ
SR No.650003
Book TitleVikramaditya Chaupai
Original Sutra AuthorSomgani
Author
PublisherMansor
Publication Year1882
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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