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________________ तिते कारण करी कुकीय निःशन्निध 15. सा० साधु चारित्री या स्वामीजंबूपति कहि ॐ तद्यागुरुशिष्य तणवुनंत्तिसारणा 'शिबमाया मयि समूहः ॥ २ ॥ ॥ श्रीः कदनुका सामन्नं जी० जेकाई का काम लोगन ननिनावारि नही तो परि मालिका दि० मादाइ दुखपा मं० पाहुया श्रध्यवसाय नई बातो को वस्त्र सुगंध वस्तु इस्त्रायादिकस मय्या 2 यान्तरल दिक एनलानी बानाकर त्र्यासन त्रिकविष्णुना फूलना उपमानजं अध्ययन संपूर्णः क० कि सागू विचारंण कुछ कर इति प्रथमं व्यध्ययनं इसाचारित्रन साधुन दविण्दवासा धूमू तासात पालीनालय एहार तेट्न ब्रह्मचर्य का लताद जाका मन निवारए पए एविसायोता संकष्णस्स व संगनगमलंकार इन्वासयनि य०यतानि एतलावानांनी नं. नाम रुन a जे जे कान लोगवतापसि त्यागी ३० इम कही पं 2 नवी करवा माटिक जे जेपुरुषमधार लाया। एदंवा लोग निश साठयातन अधिकार बा लोकं मनन गमतासि विवेगला को कर व्यययन दाइवाल्हा सोलोगनिरू कहिय त्यि ลง य श्राजन लुजेति नासचाईं त्रिख ||2|| जयकांत पिलाए लाघविपिठिउच्चई साहा । घन ॐ निश्च सोगनिष् चार त्यागीएम की ३ गुरुशिवान व्रतन लाल परिसा के दि बसनमरुपाया सः समतानाच विचारिनिरूपविच सिकदा मन्मननिनाक घर की बाहिर चित २५ एम मजम पालता ल एचयलाए मऊचाईचि । । समायापदा एपरित्रयांना सियाम निस्मरबादिया न तिवार एम चीन न नही मा 5 चीतवीन नातेरिकी नवी म० माहराना नहीं मि विनिवार रा० काम राग नि विपि मन हामि श्रापवा निमति एम करा का काम सागनाथां छाताना नीलाइ बोसो कम बनाने की लप गुरु क्रमलाई | सामदानां विग्रदेपिनास शचवताविरागे। ४॥ यायावयादी चयासागमनं कामिकमा तिवार क० लघ लबेद दो दिन लिए एपिर मु० मुखा दोघा खु०निश्वई 505रखन रामनन संसारमा ह स्वमर्धन ही प्रतिनमिनिकंदि मनमरि अन्जलती जो० व्यग्निमाह ही कमियंखुडरकं छिंदा दादा से विणश्रागं एवं मुदिादा हिमि संघराए।परिवाद जलियांजा
SR No.650002
Book TitleShadjivanikay Sutra
Original Sutra AuthorSwayambhava
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages28
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size4 MB
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