________________ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / // 296 COMCHA+PARC+% निव्वहणे सच्चं मुणिपुंगवो तंसि // 55 // दूरीकयमयपसरो गुरूमाणकरिन्दविन्दनिद्दलणो। मुणिसीह वससि जुत्तं गुरूकुलवासे * श्रोतेन्द्रियगुहावासे // 56 / वेयावच्चे नियमो मेरूगिरिन्दो व निच्चलो तुज्झ / किं चोजं विबुहाणवि जं संथवगोयरो होइ / / 57 // वशग: धन्नोसि तुमं मुणिवर तुज्झ सलद्धो य माणुसो जम्मो। तुमए तं खमियत्वं अवरद्धं जं मए तुज्झ // 58 / / इय संथवणं काउं प्राणी हिट्ठो संतुट्ठमाणसो देवो / नमिऊण नन्दिसेणं जहागयं पडिगओ झत्ति // 59 // सोवि मुणी पुरमज्झे साहहिं उवासयम्मि कीदृशः पविसन्तो / पुट्ठो कहिं गिलाणो ? कहइ इमं देवमायत्ति // 6 // एवं जयंति ! कुलगणगिलाणगुरूसेहबालवुड्डाणं / वेया- कर्मवन्धः वच्चविहाणे सेयं चिय होइ दक्खत्तं / / 61 // 4 करोतीतिः ॥दक्षत्वे नंदिषणाख्यानकं समाप्तम् / / प्रश्नोत्तरम्। एवं श्रीवर्धमानजिनचन्द्रेण दक्षत्वप्रशस्यताविषयसंशयापनोदक्षीरोदसमुल्लासे सहस्रगुणव्यक्तभक्तिमुक्तावलीशृंगारितहृदयस्थली जयन्ती श्राविका पुनः प्रश्नयामास-तथा च सूत्रंपुण पुच्छेइ जयन्ती भंते सोइन्दियस्स वसगो कि?। बंधइ चिणइ उवचिणइ जयंति! सिय सत्त सिय अट्ट॥२४ कम्मपगडीओ दढं बन्धइ पकरेइ चिणइ उवचिणइ / लोयणघोणारसणाफरिसणवसगावि एमेव // 25 // इत्यादि व्याख्या-श्रोत्रेन्द्रियवशगः प्राणी किं बध्नाति ? किं चिनोति ? किमुपचिनोति ?, भगवान् प्राह-जयंति स्यात् सप्त स्यादष्टौ वा, कर्मप्रकृतीरायुर्विहीनाः सप्त, आयुःसहिता अष्टौ / अद्रढा द्रढीकरोति, चिनोति-अल्पप्रदेशा बहु| प्रदेशीकरोति / उपचिनोति-मंदानुभावाः तीव्रानुभावा अल्पकालस्थितिका बहुकालस्थितिकाः करोति / लोचनघ्राणरसना- ID // 296 // RANKS