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________________ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / // 294 // CA5% ओसहाईहिं / काऊण समाहाणं मए हि भुत्तवमणुदियहं / / 22 / लेह अमिग्गहमेयं पालिन्तो तो गणम्मि विक्खाओ / जाओ सलहणिजो मेरूगिरिन्दो व मज्झत्थो / / 23 / / अह सो निरीहवित्ती वेयावच्चम्मि निच्चलपवित्ती / आलस्सविहिनिबित्ती जाओ ससिसंखसमकित्ती // 24 // सोहम्मसुरिन्देण ओहिनाणेण नायगुणविन्दो / साणन्देण सुराणं मज्झम्मि पसंसिओ एवं // 25 // हं भो सुणन्तु देवा वेयावच्चम्मि नन्दिसेणमुणी। निचलचित्तो कहमवि चालिजइ नेव देवेहिं // 26 // एवं सुरिन्दवयणं एगो सोऊण तियसवरनाहो। आगन्तूण विउवह मुणिरूवं रोगगणगहियं // 27|| नगरस्सन्तो पविसई रूवेण तेण साहुबसहीए / गन्तूण भणइ भो भोको तुम्हं नन्दिसेणोत्ति ? // 28 // साहहिं दंसिओ सो उवइट्ठो छदुपारणे कवलं / मणिऊण नमोकारं गिन्हन्तो पाणिकमलेणं // 29 // मुणिरूवसुरेणेसो तो वुत्तो तेण आसुरूत्तेणं / वेयावच्चकराहम ! तुमंसि अप्पम्भरी चेव ? // 30 // न कुणसि निग्घिण! जेणं गिलाणमुणिपुंगवस्स पडियरणं / इइ सोचा तत्वयणं मए न नायंति भणिऊण // 31 // मोत्तण पाणिकवलं उदुइ तो नन्दिसेणमुणिसीहो / पुच्छइ कत्थ गिलाणो चिट्ठइ रोगेण केणत्तो ? // 32 // मुणिवेसेण सुरेणं वुत्तमईसारपीडिओ बाहिं / चिट्ठह विट्ठालित्तो तण्हासुक्ककण्ठुट्ठो // 33 // तो नन्दिसेणसाहू तुरियं परिभमइ नयरमज्झम्मि / फासुयजलगहणत्थं देवो पुणऽणेसणं कुणइ // 34 // परिभ्यदिवसत्ती तवप्पभावेण गहियसुद्धजलो / सुरदंसियमग्गेणं उजाणे जाइ हिट्ठमणो // 35 // तो तेण गिलाणेणं वोत्तो पाविट्ठ निट्टरमणोसि ? / उयरमरणिक्करसिओ वसिओ न गुरूण पयरले / / 36 // नाएवि गिलाणत्ते आगाढे मज्झ कालक्खेवेण / जमिहागओसि ? निद्दय ! तमगीयत्थो असंविग्गो // 37 // एएण उजमेणं कह तुह संसिञ्जए ? जए एयं / वेयावच्चगरत्तं ? दुदइवदिन कलंक वा // 38 // इच्चाइनीरसेहिं वयणेहिं तजिओवि सुपसनो / हा वयावृत्त्य विषयां शक्रकृता प्रशंसा श्रुत्वा नन्दिषेणो देवेनैकेन परीक्षितः। CC ACAD
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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