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________________ // 285 दूवाल पुण्य मित्रस्त स्वजनाः प्रतिबोधिता। BRDASHAALA-443 तेसि गरूए मुणिरयणुप्पत्तिरोहणगिरिम्मि / दन्बलियपुस्समित्तो सुयमाणमहोयही जाओ // 74 // घयवस्थपुस्समित्ता अन्नेवि य दुन्नि मुणिवरा तत्थ / उवटुंभकरा जाया सबालवुड्डम्मि गच्छम्मि // 75 // गामागरनगरेसु विहरन्ता अजरक्खियमुणिन्दा / दुब्बलियपुस्समित्तस्स सयणनिवासे पुरे पत्ता // 76 // सयणावि बुद्धदसणभावियमइणो भवन्ति जिणवयणे / तणुदुम्बलत्ति हेऊ किरइ कटुं तवचरणं // 77 // जं अम्ह एस सयणो साहू अइदुब्बलो दयट्ठाणं / तो किं कट्ठतवेणं झाणं चिय मुक्खहेऊत्ति // 78 // तं पण ज्झाणं सम्मं झाइजइ बुद्धदंसणे चेव / कम्मवणदहणहयवहसहोयरं होइ जं अइरा // 79 // तो अजरक्खिएहिं गुरूहि करूणापवन्नहियएहिं / महुरक्खरवयणेहिं भणियं सम्बोहणढाए // 8 // अरिहन्तपवयणे च्चिय झाणं भवजलहिसेउसंडाणं / जेणेस दुबलतणू निच्च अइनिभोईवि // 81 // को पच्चओत्ति ? तेहिं भणिए वुत्तं गुरूहि तयहुसं / अइसरसभोयणेण उवयरिबो बहुं एस // 82 // अम्हे पुण विहरामो अवरावरदेसनयरगामेसु / उवचियदेहावयवो तुज्झेहिं एस कायवो // 83 // अन्नत्थ विहरिऊणं सुइरं पञ्चागया किसं साहुं / दुब्बलियपुस्समित्तं दद्वं जम्पन्ति ते गुरूणो // 84 // कह तुम्हाण समीवे दुविओवि अइसरसभोयणेणाबि / स विसेसकिसो जाओ ? तो बुज्झह | झाणमाहप्पं // 85 // पिच्छह संपइ झाणं मुत्तूर्ण रूक्खतुच्छभोईवि / होही उबचियदेहो तुम्हाणं पच्चओ एसो // 86 // तो सयणाण समक्खं एसो भणिओ गुरूहि पइदिवसं / गिन्दसु लुक्खाहारं कुणसु तुमं झाणपरिहारं // 87 // इच्छामित्ति भणित्ता तेण तहाणुहियम्मि गुरूवयणे / अमयरससेयसरिसे पल्लवियं तस्स अंगेहिं // 88 // तो विम्हइया सयणा झाणविमुक्खेण लुक्खअसणेण / अचिरेणं अइउवचियतणुलट्ठी एस संजाओ // 89 // तत्तो गुरूहि भणियं हियए झाणानलम्मि ISISRAECARRCIRCAROO 2856
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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