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________________ सायै जवदः // 7 // शौरिः प्रीतिस्वादुरसातिमात्रग्रहिलीकृतः। ऊचे सन्तु सप्तगर्भाः कंसाधीनास्तव प्रिये // 8 // सखे ! महान् प्रासादोज्य॥२८७॥ मित्युच्चः क्षीववद् वदन् / दशाण समं पीत्वा सुरां कसो गृहं ययौ // 9 // अतिमुक्तकवृत्तान्तं पश्चादाकर्ण्य वृष्णिमः / सत्यवाक् | आराद्धनैगचिखिदे हाऽहमृजुः कसेन वञ्चितः // 10 // मेषिणा इतश्चेभ्यो नाग इति श्रीभद्रिलपुरेऽभवत् / तस्याहतस्य सद्धर्मेऽनलसा सुलसा प्रिया॥११॥ बाल्ये तस्याश्चातिमुक्तश्चारणः साधु- दत्ताः सुलराख्यत / पित्रोरिन्दुमुखी निन्दुरेवेयं भाविनी सुता // 12 // शक्रस्य पत्त्यनीकेशो नेगमेषी तया सुरः। आराद्धस्तपसा तुष्टः पुत्रान् देवक्याः शप्रार्थ्यत जीवतः॥१३॥ नश्यत्प्रसूतेरस्याश्च तपसा प्रवणीकृतः। सोऽवधिज्ञानतो ज्ञात्वेत्याख्याति स्म मनोमुदे // 14 // कसेन याचि षट्पुत्राः a तान् हन्तुं छलतो देवकीसुतान् / अहं ते गर्भसंचारादास्ये निन्दोः स्वकर्मतः // प्रतिज्ञायेति देवेन स्वशक्त्या तुल्यकालता / देवकीसु-IN लसाऽपत्यप्रसवाय विनिर्ममे // 16 // समं ते सुपुवाते च देवक्याः पद्सुतान् क्रमात् / ददौ देवः सुलसायै देवक्यै सौलसान्पुनः // 17 // दृषद्यास्फाल्य कंसोऽपि निन्दोः पुत्रान्मृतानपि / मारयंस्तानऽमोदिष्ट निकृष्टजनधूर्वहः॥१८॥ वर्द्धन्ते स्म च देवक्याः षद पुत्राः सुलसागृहे / तस्या एव प्रमोदिन्याः स्तन्यापीति सुखोद्धराः // 19 // नाम्नाऽनीकयशोऽनन्तसेनावजितसेनकः / निहतारिदेवयशाः शत्रुसेनश्च ते श्रुताः॥२०॥ अहो तु कर्मणां शक्तिीवो दक्षोऽपि तेन यत् / उपायैर्वञ्च्यते तस्तैः कंसो निन्दोः सुतैर्यथा | // 21 // सिंहपद्मसरःसूर्यविमानाग्निगजध्वजान् / मुखे प्रविशतः सप्त कृष्णजन्मनिवेदकान् // 22 // स्वमान्निशान्ते प्रैक्षिष्ट ऋतुस्नाताऽथ देवकी / पत्ये प्रबुद्धा चाचख्यौ व्याचख्यौ सोऽपि तानिति // 23 // युग्मम् / / निर्भयं सिंहवद् राजहंसैः सेव्यं सरो यथा / // 287 // मार्चण्डमिव निदोषं विमानमिव निर्मलम् // 24 // समिद्दीप्तं वन्हिमिव दानशौण्डं गजेन्द्रवत् / गुणोत्कलं ध्वजमिव प्रिये, त्वं पुत्र
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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