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________________ संवेगरंगसाला पूर्वमन्त्रातज्ञानाय समस्याश्लोकाईविरचनम् । ॥७०५॥ एमाऽऽइपसमपीऊस-सारवाणीए पसमियकसायो। उवसंतो संभृतो, गया य ते दो वि उआणं ॥९१९३॥ पडिवजिऊणमऽणसण-माऽऽसीणा दो वि एगदेसम्मि । तत्तो सणंकुमारो, चक्की अंतेउरेण समं ॥९१९४॥ आगंतु' भत्तीए, तेसि चलणुप्पले नमसेइ । एवं थीरयण' पि हु, नवरं तचिहरसुहफास' ॥९१९५॥ अणुभवमाणो संभूय-मुणिवरो भणइ जइ इमस्स फलं । अत्थि तवस्स तया हं, भवंतरे होज चक्कि त्ति ॥९१९६।। एवं नियाणबंधो, तेण कओ चित्तसाहुणा बहुसो । वारिज'तेण वि भव-विवागसंसूयगगिराहि ॥९१९७।। आउकूखएण मरिउ, सोहम्मे भासुरा सुरा जाया। तत्तो चविउ चित्तो, उववो पुरिमतालम्मि ॥९१९८॥ इन्भस्स सुयत्तेण', संभूओ पुण पुरम्मि कंपिल्ले । बंभस्स भूमिवइणो, चुलणीए सुओ समुप्पभो ॥९१९९।। विहियं च बंभदत्तो ति, तत्थ नाम पसत्यदिवसम्मि। एत्थ य ता वत्तव्य', जा सो चफित्तणं पत्तो ॥९२००। साहियसमग्गभरहो, भरहो इव भुंजए विसयसोखं । अह जायजाइसरणो, कहमऽवि एगत्थ पत्यावे ॥९२०१॥ पुव्वभवभाउजाणण-कएण दासाऽऽइपंचभवगम्भं । लोगाण सणत्थं, विरएइ इमं सिलोगद्ध ॥९२०२॥ "आस्व दासौ मृगौ हंसौ, मातंगावमरौ तथा।" इति एयं च रायवारे, ओलंबावेत्तु इय भणावेइ । जो एयपच्छिम ', पूरइ से देमि रजद्ध' ॥९२०३॥ अह सो पुव्वुवइट्ठो, जीवो चित्तस्स मोत्तु गिहवासं । संजायजाइसरणो सम्म घेत्तण पव्वज ॥९२०४॥ अप्पडिबद्धविहार, विहरंतो आगओ तहिं नयरे । एगत्थुजाणम्मि, ठिओ य सद्धम्मझाणेणं ॥९२०५॥ ॥७०५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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