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________________ संवेगरंगसाला ॥४८४॥ ॥६२६४॥ ॥६२६५॥ वञ्जवडणं व दुस्सह-मब्भकखाणं इमं च सुणिऊण । परमविसायमुवगतो, संचितिउमेवमाऽऽदत्तो आ पावजीव ! पुव्वब्भवम्मि, एवंविहं कथं कम्मं । किंपि तए तेणेमं, दुव्विसहं वसणमाऽऽवडियं इय संवेगोवगतो, सरिउ चिरभवसुचिष्णसामन्नं । सुहझाणहणियकम्मो, सो केवललच्छिमऽणुपत्तो ॥६२६६॥ महिओ देवनरेहि य, रुद्दो पुण तेहि चैव सव्वत्थ । पावो त्ति खिसिओ बहु, तह अन्भकखाणदाइ ति ॥ ६२६७॥ इय सोऊणं तुममऽवि, अब्भकूखाणाउ विरम् भो खमग ! जेणीहियगुणसाहण - हेउसमाहि' लहु लहसि ||६२६८|| तेरसमपावठाणग-मुबइ लेसओ इमं ताव । अरइरइनामधेयं, एत्तो दंसेमि चोदसमं ॥६२६९॥ rosoft दोहि fa, एकं चिय विति पावठाणं जं । विसओवयारवसओ, अरई वि रई रई १ वरई ||६२७० ॥ जह निप्पम्हदिसाए, पावारे पाउयम्मि जा अरई । स चिय पम्हदिसाए, तप्पाउरणे रई होइ तह पहिल्लदिसाए, पावारे पाउयम्मि जा य रई । स च्चिय इयरदिसाए, तप्पाउरणे भवे अरई जह य असंपत्तीए, पत्थियवत्थुस्स होइ जा अरई । स च्चिय रत्तणेणं, तस्संपत्तीए परिणमह तह जा संपत्तीए, पत्थुयवत्थुस्स होइ एत्थ रती । अरइत्तणेण स च्चिय, तस्स वित्तीय परिणमह ॥६२७४॥ अहवा बज्झनिमित्तं, विणा वि किर अरतिमोहकम्मुदया। देहे च्चिय जा जायइ, अणागयाऽणिट्टसूयणिया ॥६२७५।। सा अरई तव्वसओ, अलसो विहलंघलो विगयसन्नो । इहपरलोयपओयण - पसाहणेसु पमायंतो ॥६२७१।। ॥६२७२॥ ॥६२७३॥ ||६२७६ ॥ १ वरई = वि अरई या प्रमाणे संधि अनी । अङ्गः जातिस्मरणेन केवलप्राप्तिः अरतिरतिपापस्थान स्वरूपं च । ॥४८४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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