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________________ संवेगरंगसाला प्रत्याख्यानगुणाः । 11४२३॥ एलतयनागकेसर-तमालपत्तं ससकर दुद्ध। पाऊण कढियसीयल-समाहिपाणं इमं पच्छा ॥५४६१॥ महुरविरेयणमेसो, कायब्यो फोफलाऽऽइदव्वेहि । निव्वाविओदरऽग्गी, जेण समाहिं सुहं लहइ ॥५४६२।। आणाई बत्थिमाऽऽईहि, वा वि कायन्वमुदरसोहणयं । वेयणमुप्पाएजा, करीसमऽच्छतयं उदरे । ॥५४६३।। तो जाजीवं तिविहं, आहार वोसिरेहिइ खवगो। इइ निजवगाऽऽयरिओ, संघस्स इमं भणावेइ ॥५४६४।। एस महप्पा खवगो, जाजीवियमऽणसणं गहेउमणो । सिरि रइयपाणिपउमो, तुम पयवंदणं कुणइ ॥५४६५।। विन्नवइ य तह कदमवि, सपसाएणं ममं भवेयव्वं । भयवं ! तुमए जह वं-छियऽत्थनित्थारगो होमि ॥५४६६॥ आराहणपच्चइयं, खबगस्स य निरुवसग्गपच्चइयं । काउस्सग्गमऽणुव्विग्ग-माणसो कुणइ तो संघो ॥५४६७।। पच्चकखावेइ तओ, सूरी खवगं चउव्विहाऽऽहार । संघसमवायमज्झे, चिइवंदणपुव्वयं विहिणा ॥५४६८।। अहवा समाहिहेउ', साऽऽगार चयइ तिविहमाऽऽहार। तो पाणगं पि पच्छा, वोसिरियव् सयाकालं ॥५४६९।। जं पाणगपरिकम्मम्मि, छविहं पाणगं समक्खायं । तं से ताहे कप्पइ, तिविहाऽऽहारस्स वोसिरणे ॥५४७०॥ आरुहियचरित्तभरेण, गुरुसयासे अणूसुगेण सया। दव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य अपडिबद्धेण ५४७१।। पच्चकूखाणम्मि कए, आसवदाराई हो ति पिहियाई। आसववोच्छेयम्मि उ, तन्हावोच्छेयणं होई ||५४७२।। तन्हावोच्छेयम्मि, जीवस्स उ पावपसमणं होइ । पावस्स पसमणेण उ, विसुद्धमाऽऽवासयं लहइ ॥५४७३॥ आवासयसोहीए, दंसणसोहिं तु पावए जीवो। दंसणसोहीए पुणो, चरित्तसोहि धुवं लहइ ॥५४७४॥ ॥४२३
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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