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________________ कर्मप्रकृतिः शुद्धि पत्रकम ॥२२॥ DISCREDIOT पतिः पत्रम् पृष्ठं अशुद्धम् शुद्धम् पंक्तिः पत्रम् पृष्ठं अशुद्धम् शुद्धम् विरमह १३ २३ १ सच्चेव सा चेव ८१ णिरिसेइ दसति ५ २३ २ छभंगा। उज्जोयबाय छ भंगा जे चेष एककेते? भन्नइ रपत्तेयसाधारण जसा- पन्नाए भणिया ते चेव, ८२ अहिगारो पत्ति] अहिगारो पति जसेहिं चत्तारि भंगा, भहवा सरीरपज्जत्तीप ९ ९१ तिछावि संघयणाणि 'उ आतपबायरपत्तेय पज्जत्तस्स उसासे भ. त्तरतणुसुति जसाजसेहिं दोणि गुइन्ने आयाधुज्जोयाणं १० ९, होति? होति ? भन्ना भंगा, सव्वग्ग छ। एगयरे उइन्ने बावन्ना, -त्तगा सब्वे पत्थवि छ भंगा। [कवल] केवलणाणा केवलनाणे १३ २३ २ पयाणि पयाणि नव उप्पण्णे ९ २४ २ अट्ठासीया । (अहवा अट्ठासीया भंगाणं जे ७ १८ १ अर्णताणुअणंताणुबंधि चउप्पण्णाए। अहवा खातियसम्मउवसम- खातियसम्मद्दिहिस्स २४ २. पत्थवि पत्थवि उज्जोवेणं दिहिस्स उचसमसम्मद्दिहिस्स | ११ २४ २ अट्ठासीया) पर्व अट्ठासीयाभंगाणं । एवं २१ २ संजोय संजोगा ११ २४ २. भासाए भासापज्जत्तिए २१ २ दस च, छण्णो- दस चउबीसाओ, छ २५ १ भंगा॥ भंगा। वेउव्यियस्स सम्वोदीरणग्गं अट्ठा काळODARDOS ॥२२॥
SR No.600347
Book TitleKarm Prakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Chirantanacharya, Malaygirisuri, Yashovijay Gani
PublisherJin Gun Aradhak Trust
Publication Year2016
Total Pages1490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size37 MB
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