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अवर्णवाद बोलतो, जेमके-अरिहंत यया तो समोसरणमा शुं बेसवू, अरिहंतना परुपेल जे श्रुतधर्म द्वादशांगी कहेवाय छे, ते पाकृत भाषामां रचायेलुं छे, तेथी कोइ निपुण समर्थ विद्वानोनो ए लेख गणाय नहि; जो परिपूर्ण विद्वान होय तो संस्कृतमा केम लखे नहि ? एहवी रीते अवर्णवाद बोलतो ॥२॥ तथा अरितना कहेल चारित्रधर्म तेनो अवर्णवाद बोलतो जेमके:-चारित्र ते शा कामनु, दान देवू तेज भलु छे, कारण के गृहस्थाश्रम विना दान दइ शकातुं नथी, तेथी गृहस्थमा रहेq तेज सारुं छे, इत्यादिक अवर्णवाद बोलतो ॥३॥ तथा आचार्य, उपाध्याय ए बालक छे, बुट्टा छे, इत्यादिक अवर्ण वाद बोलतो ॥ ४॥ चतुर्विधसंघनो अवर्णवाद बोलतो, जेमके:-ए संघ शेनो ? पशुनो समुदाय ए सरखो छे, इत्यादि अवर्णवाद बोलतो ॥ ५॥ विपक एटले प्रकर्षने पामेला जे तप अने ब्रह्मचर्य भवान्तरने विषे जेभोना, ते हेतुवाला देवायुष्कादि कर्मछे जेओना, एवा देवताओना अवणर्वाद बोलतो, जेमके:-देवो छेज नहि, देवता होय तो क्यारेक तो देखाय, माटे देवताओ छेज नहि. अथवा कामथी छाकटा बनी गयेला अथवा मरेला मडदा जेम उघाडी आंखोवाला अने शासननी खबर नहि लेवावाला; एवी रीते देवताना अवर्णवाद बोलतो-परिपूर्ण पाछला भवना तप, ब्रह्मचर्य पाल्याथी देवतापणुं पाम्या ते देवताना अवर्णवाद बोलतोधको जीव दुर्लभबोधिपणाने उपार्जन करे, तेथी जीवने जैनधर्म श्रद्धापूर्वक उदय आवq मुश्कल थई जाय छे ॥५१॥
ManusaavanaanaavaNDamavastavaDVIReate/san