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घणा नाव श्म पंचम अंग, अन्ननथि सुर सत्तम अंग॥ वांके समे कहणे अांतरो, जुवा खल गुल इक कां करो ॥४॥
आवी रीतना सम्यक्दृष्टिदेवोना घणा जुदा जुदा भाव भगवतीसूत्रमा कह्या छे, अने अन्य जे मिथ्यादृष्टि देवो तेना भाव उपासकदशांगसूत्रमा कह्या छे. माटे वक्रताथी बोलवू अने शरलतायी बोलवू तेमां घणो आंतरो छे, तेम खोल अने गोल कोइ वर्णानुपाशथी सरखामणी करी साचुं माने तो ते साचुं होय ? नन होय. तेम एक देवना नामथी सम्पदृष्टि अने मिथ्यादृष्टि बने सरखा गणे तेनी सत्य परुपणा गणाय ? नज गणाय ॥४८॥
मिथ्यादृष्टी समकित धार, अंतर जाणी करो विचार ॥ सम्यकदृष्टी पंमित नणो, मिथ्यादृष्टि बाल श्म गणो ॥४॥
माटे मिथ्यादृष्टि देव बालना भंगमा छ, अने सम्यक्दृष्टिदेव पंडितभंगमां देवाधिदेवे कह्या छे. माटे हे भवभीरु पुरुषो | उत्सूत्रना फळ कटुक जाणी जे विचार करशे ते सम्यक्वादी; अने नहि विचार करे ते मिथ्यावादी ।। ४९ ॥
जिण अरिहंत अने केवली, उहिनाण नाखे ते वली॥ गणंगे इण गुणि देवता, अवगुण नाखी खासे खता ॥५०॥
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