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________________ 30/ a ] o/anasamastDEB80000000aceboo दर्शावी तेतलिपुत्रने संसारथी विरमवा माटे प्रतिबोध करवा लाग्योः पण राज्यमद, यौवन, अने ठकुराइना सुखमां निमग्न थएलो प्रधान विवेक रहीत थयो, अने घणा प्रकारथी समजावतां छतां तथा युक्ति प्रयुक्ति करतां छतां पण प्रधानने बोध लाग्यो नहि. अने आत्मा, पुण्य पाप विगरे कांइ नथी, अने प्रत्यक्ष छे तेज साचुंछे एम मानवा लाग्यो. पोटीलदेवे विचार कों के सुखमां उछरेलो जीवडो दुःखनी वात जाण्या शिवाय अनुकूळ उपसर्गथी बुझवानो नथी | पण राजा प्रजाना तिरस्काररूप प्रतिकुल उपसर्ग थशे तोए जीवनुं कल्याण थशे. एम विचारी तेणे राजानु मन परावर्तन कयु. एकदा तेतलिपुत्र अश्वारूढ थइ घणा माणसो साये परवयों थको राज्यकचेरीमा जवा लाग्यो. ते वखते सामंतवर्ग तथा प्रजावर्गना जयजयकार शब्द थया अने सर्वे नीचा नमी नमस्कार कर्यो तेथी प्रधानने घणोज हर्ष थयो. पछी हर्षपूर्वक जेवो कचेरीमा प्रवेश करे छे तेवोज पोटील देवना प्रभावे राजा कनकध्वजनो प्रधान उपर तिरस्कार थयो. प्रधाननी सलाम लीधी नहीं, अने राजा क्रोधयुक्त थइ मुख फेरची बेठो. एकदम आवो अकस्मात बनाव बनवाथी प्रधान निस्तेज थयो, ते तरतज त्यांथी पाछो दब्यो, अने “यथा राजा तथा प्रजा" ए न्याय मुजब राजाए अपमान करवाथी सामंतो तथा प्रजाए पण अपमान कयु, अने सर्वेए परांगमुख कयु. ए प्रमाणे बाहिर सभा तरफ अपमान थवाथी प्रधान घेर चाल्यो. त्यां अभ्यंतर सभा जे स्वजनवर्गनी ते पण उपरांठी थइ अने मात, पिता, भाइ, बेन विगरे कोइए पण प्रधानना सन्मुख जोयु नहीं. कुदरत तरणानो मेरु अने रंकने राजा करे छे. राजा भिखारी थाय छे. अने कामदेव जेवा स्वरुपवाळा होय तो पण avaoGD/oupasastAD/ ED/ 30
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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