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देवाय बालाय असंजयाय, सुत्ता अधम्मी तह मंदबुद्धि॥
असंवुमा नो विरश्य तेसिं, किंचित्ति नासंति सन्ना समकं. ॥३॥ भावार्थ-तेभो एम कहे छे के देवो चाल छे, असंजति छे, सुत्ता ( मोहमय ) छे, अमि छे, मंदबुद्धि छे, तथा | असंवुडा छे ( आश्रव नथी रोक्या जेणे) तथा अविरति छे, एवी जेभी सभा समक्ष प्ररूपणा करे छे. ३
वयंति नो किंचि विसेस नायं, सामन्न नावेणय पन्नवंति ॥
मिछत्त समत्त गुणेग बुद्धिं, कुणंति नेयाउय मेव नेयं ॥४॥ भावार्थ-तेओ काइपण विशेष रीते दृष्टांत सिद्धांत बतावीने समजावता नथी. पण लोकोने भ्रममा नाखवा सामान्य भावे मिथ्यात्व अने सम्यक्त्वगुणमा एक सरखी बुद्धि दर्शावे छे. अने स्याद्वादशैलीथी समजावी शकता नथी. ४
गुरूण पासंमि सुयं सुणेमो, वयंने एयं न पमिस्सुणेमो ॥
सुत्तपि मन्नंति न तेण तुम्हं, पुरो जिणुत्तं वयणं नमो ॥५॥ १ वयंतु, इति पाठान्तरम्.
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