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| जिन वाणी नूण ॥ ख. ख. रस. चंड. (१६००) वरसे उजळी, वैसाख आम मनरळी ॥११॥ | शुक्रवारे ए पुरो करीयो, महारुषीश्वर नवजळ तरीयो ॥ ते मुनिवरनो समरी नाम, त्रिकरण : शुद्धे करुं प्रणाम ॥ १० ॥
इति श्री मन्नागपुरीय वृहत्तपागच्छाधिराज शतार्थशक्तिपरसिद्धान्तवृत्त्यनुसारिबा लावबोधविधायक श्रीयुगप्रवर श्वेतांबराचार्य पार्श्वचन्द्रसूरिकृतं श्रीखंधक मुनिचरित्रशतकं संपूर्णम् ॥
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