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नाराच संघयण १, समचतुरस्र संस्थान १, पराघातादि ५, अगुरुलघुनाम १, वर्णादिक ४, उपांग ३, तीर्थकरनाम १, तिर्यंचयाउ १, उच्चैर्गोत्र १, पंचेंद्रिजाति १, शुनविहायोगति १. एवं ४५ पुन्यप्रकृति.
पापप्रकृतिना २ नेद ॥ संघयण ५, संस्थान ५, कुखग १, तिर्यंच २, अशातावेदनी १, नीचैर्गोत्र १, उपघात १, जातिचतुष्क ४, नरकत्रिक ३, थावरादि १०, अप्रशस्तवर्ण ४, सर्वघाति देशघाति ४५ एवं ७२ प्रकृति पापनी जाणवी.
अपरावर्तनी प्रकृति ए ते कयी? वर्ण चतुष्क ४, तेजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १, निर्मा| ण १, उपघात १. दर्शनावरण ४, ज्ञानावरण ५, अंतराय ५, पराघात १,जय १, जुगंबा १, मिथ्या| स्वर, उश्वास १, जिननाम १, एवं श्ए अपरावर्तनी प्रकृति जाणवी.
__ परावर्तनी ए१ प्रकृति ते केइ ? तनु ३, उपांग ३, संघयण ६, संस्थान ६, जाति ५, गति ४, | खगति , आनुपूवीं , वेद ३, हास्यादिक ४, कषाय १६, उद्योतयातप २, गोत्र २, वेदनी २, | निमा ५, सादि २०, आउ ४, एवं परावर्तनी ए१ प्रकृति जाणवी.
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