SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ % - /AATRAIBAPPENSATIval - E हणाए; तोपण मेघावादित सूर्यप्रनानी पेठे रात्रि दिवस विनागनी करनारी प्रना अनावृति होय |, तेवीज रीते जीवने पण एकांशे घटादिकनी प्रतिपत्ती अविरुद्ध होय तथा अक्षरनो अनंतमो | | नाग ऊघामो हमेशां जीवने रहे बे, ते परम निकृष्ट गुणनी अपेक्षाये मिथ्यात्वीने गुणस्थनाक कहेल ने पुनः कोइ कहेले के-- ज्यारे मिथ्यात्वी पण मुक्ति हेतु क्रिया करे त्यारे गुणगणी गणाय बे, पण ते सिवाय मिथ्यात्व नूमिस्थ गणाय . अथवा ए सम्यक्त्वादि गुण प्राप्त करशे | तेथी गुणगणी कहेंवा शकाय ? बीजु सास्वादन गुणस्थानक एटले के, उपशम सम्यकत्व पामी एक समय तथा बावळी | है शेष सम्यकत्व काळ होवा बवां अनंतानुबंधियाना उदयथी उपशमिक वमतां क्षीर स्वाद समान नाव मिथ्यात्व प्राप्त थयां पहेला होय ते सास्वादन सम्यक्दृष्टि गुणस्थाक गणाय . २. - मिश्र गुणस्थानक एटले के मिश्र मोहनीना उदयवमे श्री जिनना वचनोनी ऊपर रागद्वेष -18|| न होय ते त्रीजुं गुणस्थानक कहेवाय जे. ३ ProsperitDIPADDR Dosaautaneoup/app/p/ app/
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy