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मरुधरना सुरतरु सदृश जनमनवांबित पूरक अने पुष्करावर्त मेघसमान हृदयक्षेत्रने रसाल करनार देशनावंत पंमितराज श्रीसाधुरत्नजीनी कृपाथी नवदीक्षित मुनि शास्त्रोना पारगामी थया अने तेथी हृदयदेवमांथी तत्त्वज्ञानांकुर स्फुरायमान थतां संवत १५५४ नी सालमा उपाध्याय पदना अधिकारी थया. | ए समयमां जैनसमुदायनी अंदर शिथिलाचार विशेष वधी पमतां क्रियानुष्ठान विधिविप
रीत थया करतां हतां. एथी शिष्ठाचारनी प्रवृत्ति करावा त्यागी वैरागी सोनागी महदात्माए | गुरुराजनी आज्ञा संपादन करी संवत १५६५ नी शालमा क्रियाउद्धार करी शिथिलाचारने धीरे धीरे दूर करवा नगीरथ प्रयत्न आदयो. | दरम्यान पोते योधपुर पधार्या त्यां श्री संघे अने जोधाणनाथे आचार्यपद स्वीकारवा
वीनंती करी , जेथी नक्तजनोनी नावश्रेणीने वृधि साथे नेटामवा सर्वानुमतनी ऐक्यता थतां | पोते सूरिपद अंगीकार करी आचर्यताना गांनार्य अर्थने शोनाववा लाग्या. प्रमादी बनेला साधु
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