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________________ मुर दीपिका Twood neaawan DDRoo®®®®®oa तेणे युक्त धूपनी वर्तिका (वाटय)ने मुकतो वैडुर्यरत्नमय धूपनो कड छो (भाजन) विशेष तेने ग्रहण करी, प्रयत्ने करी धूप | 'खेवे, धूप देइने जिनवरथकी सात आठ पगला पाछेपगे खसे-पाछो हठे, पाछो खसीने दश अंगुलि सहित अंजलिने मस्तके करी सावधान थई विशुद्ध निर्मल एटले दोष रहित छे शब्द संदर्भ शब्दनी रचना जेने विषे अर्थ करीने प्रधान एवां वलो-पुनरुक्ति दोषेरहित एवा एकसो आठ मोटा वृत्ते करी स्तुति करे; पछी डाबो ढींचण उपाडे-उंचो राखे-एटले उभो राखे, जमणो दींचण पृथ्वीतलने विषे नमावे-एटले पृथ्वी उपर अडाडे-लगावे, पृथ्वी उपर लगावीने त्रणवार पृथ्वीने विषे मस्तक नमावे, नमावीने कांइक उंचो नमे-थोडोक उंचो थाय, कांइक उंचो थइने कड बेरखा तेणे करी थंमेला एवा जेबे भुजा तेने प्रति संहरे-एका करी संकोचे, बे हाथ एका करी संकोचीने माये आवर्तन करे-माये फेरवे, माये आवर्तन करी अंजलि करे, अंजलि करीने एम बोले, एटले आ प्रकारे नमोत्थुणं कहेतो वोः- नमस्कार थामो अरिहंत प्रत्ये, देवतादिकने पूजवा योग्य ए अर्थ. वली भगवंत प्रत्ये नमस्कार थाओ समग्र अश्वर्य यूक्त ए अर्थ छे. जावत् सिद्धिगतिनामवेय स्थानक प्रत्ये पाम्या एवा भगवंतने नमस्कार थाो तिहां मुधीनो पाठ जाणवो. एम कहीने सामान्यपणे वाद-नमस्कार करे एटले विशेषे करी अभ्युथानादिके करी वांदे. ए प्रमाणे वंदन नमस्कारनो ठाम ठाम विधिवादे अधिकार छे, तेने सारी रीते समजतो, कदाग्रह टालो, विशेष जाणवानी इच्छा होय तो श्री गुरु महाराजने पूछq. vaaom/manoaamwwwm/a/am/om ॥४३॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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