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________________ २५-३९ । सूर्य०।२३ औ०१९ रा० २० जी० २१ प्रज्ञा०२२ ॥६३॥ ० २५ प्रकी०२७ विलग्गाओ निमित्ताओ विविहं तु भावसल्लं विविहाहि व पडिमाहिय विसए अवियाखंता विसमं पवालिणोपरि .. विसमें पवालिणोपरि विसमा अजतुलाओ विसमेसु य वासेसु विसयजलं मोहकलं विसयाविक्खो निवडा विस्सरसरं रसंतो विस्ससणिजो माया विहिणा जो उ चोपद विहिसंठाणपमाणे विंटलिआणि पउंजंति वीरवरस्त भगवतो वीरिएणं तु जीवस्स २७-२२७ | वीसंभनिभरपि हु | वेरुलियमणिकवाडा २७-१३३२ | बुच्छ बलावलविहि २७-८४७ वेरुल्लिज्व्व मणी २७-१४१६ | बुच्छं बलावल हिं २७-५८७ | वोसट्ठनिसटुंगो २७-१६७२ २७-४२४ | वुड्डाणं तरुणाणं रतिं २७-८२५ | सइंदिए गं० सइदिएत्ति २२-२३४सू० २५-८७ | | विविहेहि मंगलेहि य २७-२८१६ | सउणि चउप्पय नागं २७-८८८ उब्बिय० केम० सरिरोगा०२२-२७३सू० | स एव भव्वसत्ताणं २७-७३५ २७-४९९ | वेउब्वियसरीरेणं० कतिविधे २२-२७१सू० सकथं वक्कलं ठाणं २६-३॥ २७-५०० वेटवियसरीरे,,किं संठिते? २२-२७२सू० | सकसाई पं० सकसादित्ति २२-२३९सू० २७-४०५ | वेणुजलइक्खुवाडिय २२-९२ सकाइए णं० सकाइएत्ति २२-२३५सू० २७-४२२ | बेमाणिएसुकप्पो० २ ७-७२ | सक्कस्स पं० कति परिसाओ २१-२०९सू० २७-४७३ | बेमागिया णं० कओहिंतो २२-२३७सू० | सक्कीसाणा पढौ २७-३७४ बेमाणिक देवाणं केवळ ठिई २२-२०२सू० | सग्गेसु य नरगेसु य २७-१८२७ २७-७३४ बेयणकसायमरणे २२-२२८ सच्चित्ताहारट्ठी २२-२१८ २२-२१४ | बेयण वेयावच्चे २७-७६८ | सच्छंदयारिं दुस्सीलं २७-७१९ २७-८२८ २७-१२७१ | सजोगी पं० सजोगित्ति . २२-२३७ २४-१०२ | बेयणासु उइन्नासु २७-२५५ | सज्झायकरणं कुजा २७-८८५ २७-७१५ | वेयरणि.खारकलिमल .. २७-१६३० । सज्झाय (छक्काय)मुक्कजोगा २७-८३५ ॥६३॥
SR No.600310
Book TitleUpang Prakirnak Sutra Vishaykram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandsuri, Anandsagarsuri
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1948
Total Pages182
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_index
File Size16 MB
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