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________________ विधुट कुटु कंठकय सद्दभीमगजिए, सयराय हंसतरुसंत कलकलरवे, आसुणिय वयण सद भीमदसणाधरो? गाढदढ सप्पहार करणुज्जयकरे अमरिम वसतिब्बरति निदारितत्ये वेदिट्टीकुद्धे चेडिय तिवली कुडिल भिगुडिकय निडाले; वध परिणय, नरसहस्स विक्कम वियंभियं बले वग्गंत तुरंगा रह पधाविय, समर भड। बडियच्छेयलाघव पहार साधिय समूहविय, बाहु जुयल / करनेवाला, चपल नृपार के देदीप्यमान मुकुट और कानों के कुंडल की शोभा मानो नक्षत्र माला का आडंबर ही दीखाइ देता है. ऊंची फरकती हई ध्वजा, छोटी 2 पताका, बजते हुए चामर, छत्र का गंभीर अंधकार हाथिओं का गरगलाट, घोडे का पारद, रथों का झणकार, पदातियोंका कलकलाट वगैरह शब्द से गगनमंडल को फोडनेवाला सिंह के शब्द जैसा होरहा है. जिव्हा के अग्रभाग से शब्द करना, सीत्कार शब्द करना, विरोध दर्शक शब्दोच्चार करना. आनंदकारी शद करना, कण्ठ का घोंपाटरूप शब्द करना, सिंधुरागादि। गायन करना; इत्यादि शब्दों के नाद से चारों दिशा नाना प्रकार के भेद सपान मर्जित हो रही है. एक 15 साथ सबका रहना, एक साथ सबका रोन', और जिम के कलकलाट कर किसी प्रकारका शब्द सुनाइ नहीं देवे वैता संग्राम बड़ा भयंकर होता है. क्रुद्ध नकर होठ काटन:, हाथ की सफाई के लिये भुजाओं।" 12 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम अश्रवद्रार 182 #kin अदत्त ना क तृतीय अध्ययन Hin
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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