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________________ 4अनुवादक-बालत्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पंचमां फासिदिएणं फासिय फासाई मणुण्ण भगाई, किं ते दग मंडवहारसेय चंदण सीयल विमल जल विविहकुसुम सत्थरओ सीर मुत्तिंग मुणाल दोसिणापेहुण उक्खेवग तालियंट बीयणं गजणिय सुइसीयलेय पवणे, गिम्हकाले समए सुहफासाणिय बहाणसयणाणिय आसणाणिय पोरणगुणेय सिसिरकाले अंगार पतावणाय . आयव निहमउय सीय उसिण लहुयाय जेउडु सुहफासा, अंगसह निव्वुइकराए, अण्णस्य एवमाइएसु फासेसु मणुण्ण भद्दएसु न तेसु समणेण स. जियवं. नरजियव्वं नगिझियव्वं नमुज्झियव्वं नविनिग्याए मावजियव्वं नलाब्भयव्यं नतूमियत्वं, नहसियन्वं नसइंच मइच तत्थकुजा // पुणरवि पांचवी भान-पानी के फुवो, पुष्प दक के हार, श्वेत चंदन शील निर्मल, विविध प्रकार के पुष्प, बिछाये हुए. मुक्त फल, कमल की नाल, च पवा. सुम्वकरी वन, ग्रीष्मऋतु के मुखकारी स्पर्श, विविध प्रकार की शैय्या, आसन शत कालमें उन के वस्य. आग्न से शरीर का सपाना, सूर्यके कारण पाना, तेलादिकका मर्दन, कोमल, टंडा, गरम, हलका, सुबकारी शरीर का स्पर्श. अंग व वित्त को ममाधि करनेवाले, और भी अन्य मनेज स्पर्श का अनुभव होवे तो उस में आसक्त होवे नहीं, रक्त होवे नही, गृद्ध होवे नहीं, गुप्ती की घात करे नहीं, तुष्ट हुवे नहीं, रुष्ट हो नी, अपनी मतिको प्रेरणा करे नहीं, यह अच्छे स्पर्श का कथन हुवा. अब दुष्ट स्पर्श * काशक राजाबहादुर ळाला मुखदवसहायजो ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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