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________________ गहझपणा,चउवासविहादेवा,पग्णवीसारभवणा,छवी दसाकप्पावविहाराणं ढेसकाला, अथवा मन्मुख लाकर दिया हुवा आहार भोगवे, वारंवार व्रत भंग करे. छ मास में संप्रदाय बदले, एक मास में तीन बडी नदियों के लेपलगावे, एक मास में तीन माया स्थान सेवे, राजपिंड सो बलिष्ट आहार भोगवे, आकुटी ( जानकर ) जीवों का घात करे, आकूटी मृषा वाले, आकुटी चोरी करे, आकूट सचित्त पृथ्वी पर बैठे सोरे, सचित्त शिला पाषाण पर बठे. माणभूत जीव व मत्व पर मोवे बैठे, आकूटी मूल कंद बीन हरिकायादिक का आहार करे. एक वर्ष में दश बडी नदियों का पलगावे एक वर्ष में दश माया स्थान का सेवन करे और सचित्त रज से भरे हुवे हाथों से आहार पानी ग्रहण कर भोगवे, // 22 बाइस परिषह-क्षुधा परिषह, पिपासा परिषह, शीत ऊष्ण, दंश मशक, अचेल, अरति, स्त्री, चर्या, निमद्या-बैठने का, शैय्या, आक्रोशः वध, याचना, अलाभ, रोग, तृण स्पर्श, जल, पेल, सत्कार पुरस्कार परिज्ञा.अज्ञान और दर्शन का परिषद // 23 तेवीस मूत्र कृतांग मूत्र के अध्ययन जिन में सोलह पाहिले कहे सो और दूमरे श्रुतस्कन्ध के सात कहते हैं. पुष्करणी,का क्रिया स्थान का आहार प्रज्ञा,प्रत्याख्या मन्त्रा, अनगार श्रुत, आर्द्र कुमार का और पेढाल पुत्रका // 24 चौवीस प्रकार के देव-१: भवनपति,८वाणव्यंतर,५ज्योतिषी और वैमानिक // 25 पांच महाव्र की पच्चीस भावना. (संवर द्वार के पांचों अध्ययन के अन्त में कहा) २६छवीस 7अध्ययन कहे हैं. दशाश्रुत स्कंध के 10, व्यवहार सूत्र के 18, और वृहद् कल्प के 6, यों छब्बीस अध्ययन 4अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखव-हायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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