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________________ पन्नरस परमाधम्मिया, सोलस गाहासोलसाय, सत्तरस असंजमे, अट्ठारस अबंभे, 194 बारब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषि है पहिली एक महिने तक एक दात आहार की एक दात पानी की लेवे, यावत् सातवी प्रतिमा में सात महिने तक सात दात आहार की सातदात पानी की लेवे. आठवी. नववी और दशपी में सात दिन तक चौविहार एकांतर उपवास करे. और विचित्र प्रकारके आसन करे, अग्यारवीमें छठ भक्तकरे आठ प्रहारका कायोत्सर्ग करे और बारहवीमें अष्टम भक्त तेला कर एकरात्रि श्मशान में कायोत्सर्ग करे // 13 तेरह क्रिया अर्थादंड,अनदंड,हिंसादंड,अकस्मात,दंडदृष्टि विपर्यासिया, मृषावाद, अदत्तदान,आध्यात्मदंड,मान प्रत्यायक माया प्रत्ययिक, मित्र द्वेष प्रत्यायक, लोभ प्रत्यायक, और ईर्या पथिक // 14 चौदह प्रकार के जीव-सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय इन सात के पर्याप्त और अपर्याप्त.याँचउदा / / १५पन्नरह परमा धर्माकदेव कहे हैं. अम्ब, अम्बरश,साम,संबल, रुद्र,वैरुद्र का, महाकाल, असीपत्र, धनुष्य, कुंभ, वालु, वैतरणी,खरस्वर और महाघोष. // 16 सुत्रकृतांग के सोलह अध्ययन-समय, बेताली, उपसर्ग, स्त्री परिज्ञ, नरक विभूति, वीरस्तुति, कुशोल परिभास, वीर्य धर्म, समाधि, मोक्ष मार्ग, समवसरण, यथातध्य. निग्रन्थ, यमवती और गाथा // 17 असयम सतरह प्रसार के-पृथ्वी, पानी, अग्नी, हवा, वनस्पति द्वन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, और अजीव काय इन की यतना नहीं करे. प्रेक्षा. उपेक्षा, प्रमार्जनः परिस्थापना,मन,वचन और काया का असंयम // 18 अठारह प्रकार के * कापाक-राजाबहादुरळाला सुखदेवमहायजा ज्वालामसादजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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