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________________ काणणवणप्पएसभागे किंचि इक्कडंवा काढणगंवा जंतुगंवा परमेरकुच्च, कुसदब्भ पबाल सुयग तल्लग पुष्फ फल तय पवाल कंदमूल तण कट्ठ सकाराइं मिहंति सेजोवहिस्स अट्ठा न कप्पए उग्गहं अदिन्नंमि गिव्हिओ दिणं दिणं उग्गहंअ णुणावयागव्हियन्वं, 171 एवं उग्गहसमिई जोगेण भाविओ भावइ अंतरप्पा निच्चं आहगरण करण कराणपावकम्मविरते दत्तमण्णुण्णाय उगाहरुई // 8 // तातियं पीढ फलग सेजा संथारग ट्ठयाए, रुक्खा नछिदियब्वा,नछेयणं भेयण जयसेजा करेयव्वा सेवा उवस्सते वसेज्जा सिंज्ज रहित उस के पालिकने दिया हुवा अवग्रह से ग्रहण करे // 7 // दूसरी भावना-आराम, उद्यान, छोटावन Fऔर बडावन के प्रदेश में जो कुच्छ घास, कडा, जंतुघास, पशल, कुश, मूंज, पत्र, पुष्प, फल, छाल, पवाल, कंद मूल, तृण, काष्ट, कंकर वगैरह अचित्त वस्तु होवे उसे ग्रहण करनी, हो तब उस के स्वामी की vie आज्ञा बिना लेनी नहीं कल्पती है. सदैव आज्ञा मांगकर ग्रहण करे. इस प्रकार अवग्रह समिति से अतगम को भावता हुबा अधिकरण रहित आज्ञा पूर्वक ग्रहण करे // 8 // तीसरी भावना-पीठ, फलग,. स्थान रा विछोना केलये वृक्षादि छेदे नही. वृक्षादिक का छेदन भेदन कर शैय्या करे नहीं. जिसका | यह उपाश्रय हो उन से हैं। उस की गवेषणा करे. विषम स्थान को सम बनाये नहीं, सम स्थान को है। विषपचनावे नहीं, वायु का रूधन करने का करे नहीं, और वायु आने का भी करे नहीं, आतापवाले / - दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार __48. दत्तव्रत नामक तृतीय अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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