________________ 4 169 दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र द्वितीय-संकरद्वार 4 गिण्हइ नविप्परिणामई किंचविजणं नयाविनासेह दिण्णसुक्कयं दाउणय कऊणय नहोइ पत्थायवि तेसंविभागसीले संग्गहोवग्गहकुसले सेतारिसए. आहाराहेइ वयमिणं // 5 // इमंच परदव्वहरण वेरमण परिरक्खण ट्टयाए पावयणं भगवया. सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभदं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्व दुक्खावणं विउसमणं तस्स इमा पंचभावणाओ तइयस्मवयस्त हुंति परदव्वहरण वेरमण परिरक्खणट्टयाए // 6 // पढमं देवकुल सभा प्पया वसह रुक्खमूल आराम कंदरागर गिरिगुह कम्म उजाण जाणसाल कुवियसाल मंडव सुघर सुणसाण लेण उस से पश्चाताप करे नहीं. आहार वस्त्रादिक जो प्राप्त हुवा होवे उस का स्वधर्मियों में संविभाग करे. शिष्यादिक का संग्रह करने में और उन को श्रुत ज्ञानादि देने में कुशल होवै. इतने गुनवाले दत्त व्रत वाले होते हैं // 5 // अन्य का द्रव्य हरण करने में निवृत्ति करने का यह व्रत श्री भगवानने अच्छा कहा है, आत्मा का हित करनेवाला है, परभव में सुख देनेवाला है, आगामिक भव में कल्याण करने वाला है, शुद्ध न्याय पथ अकुटिल प्रधान और सब दुःख का क्षय करनेवाला है. इस तीसरे व्रत की पांच भारना इस के रक्षण के लिये है // 6 // प्रथम भावना-देव, सभा, प्रपा, - परिव्राजक का स्थ न, वृक्ष का मूल, बाग, गुफा, आगर, पर्वत, पर्वत की गुफा, पारका स्थान, दुकान, उद्यान, स्थशाला, घर . दरोवन नाक तृती अध्ययन 428 4