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________________ . . 4.28 नगराणिय, आरामुजाण काणणाणिय, कुव सर तलाग वाविदीहाय देवकुल सभा पवा, वसहिमाइयाई बहुयाई कित्तणाणिय परिग्गिण्हिता परिग्गहं विपुल दव्वसारं, देवावि सईदगानतित्ति नतुढेि उवलंब्भंति अञ्चंत विपुल लोभाभिभूयासन्ना वासहर इक्खुगार वट्टपव्वय कुंडल रुयगबर, माणुसुत्तर, कालोदधि, लवणसलिल, दहपति, रतिकर, अंजणकसेल दहिमुहउवउप्पाय, कंचणकविचित्त, जम्मग वरसिहरी / कुडवासी वक्खार // 3 // अकम्मभूमीसु सुविभत्त भागदेससु, // 4 // कम्मभूमीसु घातकी खण्ड और पुष्कराई द्वीप के मध्य पूर्व पश्चिम विभाग करनेवाला, वाटले पर्वत-शब्दापाति इत्यादि E वर्तुत्राकार पर्वन, कुंडल पर्वत, कुंडल द्वीप में रहे हुवे, रुचक पर्वत, रुचक द्वीप में रहे हुवे, मानुषोत्तर पर्वत मनुष्य क्षेत्र में की मर्यादा करनेवाला, कालोदधि समुद्र धातकी खण्ड के चारों और वर्तुलाकार रहा हुचा,, लवण समुद्र जम्बूद्रप को घेरा हुवा, पन महा पद्म आदि द्रह, राति कर पर्वत-नंदीवर द्वीप में रहे हुए, अंजनक पर्वत-नंदीश्वर द्वीप में रहे हुवे, दविमुत्र पर्वत, उत्पात पर्वत, देवलोक अथवा भवन में से देवता तीछे लोक में आते समय जहां विश्राम लने हैं सो, कंचनागरी पर्वत, देवकुरु उत्तर कुरु क्षेत्र में द्रह के .. पास हैं, चित्रकूट पर्वत-निषध पर्वत के पास हैं, यमक पर्वत-सीता नदी के पास और पर्वत के कूट वृक्ष- स्कार पर्वत इत्यादि स्थानों में देवता रहते हैं. वे उन स्थानों को अपने मानते हुए भी परिग्रह से तृप्त, नहीं होते हैं // 3 // ऐसे ही अकर्म भूमि के मनुष्य कल्प वृक्षादि में ममत्व शील रहते हैं // 4... कर्म / - maniinwtiwimmmmmmmmmmmmmmmmmmm शमाङ-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रवद्वार परिग्रह नामक पंचम अध्ययन 44
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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