________________ म कणगवण्णा जयगहा, जोइसियंमि चारंचरति, केतुयगति रतीया, अठ्ठावीसति / / विहाय णरक्खतदेवगणा, णाणासंटाणसंठियाओय तारगाओ ठियलेरसा चारिणोय, अविस्सा मंडलगति, उवरिचरा, उड्डलोगवासी, दुविहा वेमागिय यदा-सोहम्मीसाण 121 सणंकुमार, महिंद, बंभलोय, लंतग महासुक्क, सहस्सार आणय, पाणय, आरण, और मंगल ये नवग्रह हैं. वे तप्त सुवर्ण जैसे लाठ हैं. केतू आदि ज्योतिषीयों की गति में फीरने वाले हैं, अभिजित आदि अट्ठाइम नक्षत्र के विमान अनेक संस्थानाले हैं, तारादि अनेक ज्योतिपियों के विमान में 5 अढ इ द्वीप के बाहिर लोक में रहे हुए हैं. मनुष्य लोक में गतिवाले ज्योतिषियों के विमान को क्षण मात्र विश्राप नहीं है, उन की गति सदेव मंडलाकार है. तीच्छे लोक के ऊपर के विभाग में सदा नलते रहते हैं. अब ऊर्ध्व लोकवासी वैमानिक देव का कथन करते हैं. उन के दो भेद कहे हैं. 1 कल्पोत्पन्न और 2 अल्पातीत. इन में से कल्पोत्पन्न के बारह भेद कहे हैं. तद्यथा-१ सौधर्म, 2 ईशान, 3 सनत्कुमार, 14 माहेन्द्र, 5 ब्रह्म, 6 लंतक, 7 महाशुक्र, 8 सहस्रार, 9 आणत, 10 प्रणत, 11 आरण, और 12 अच्युत, यह उत्तम विमान हैं. इन में देव रहते हैं. अब जो कल्पातीत सुरमण देवताओं का समुह है उनके दो भेद तद्यथा-१ अवेयकमें रहने वाले और२ अनुतविमान में रहने वाले. यह सब देव महः ऋद्धd, उत्तम देवताओं के परिवार से पारेवरे हुए. चारों प्रकार के देवता सामानिक, आत्मरक्षक परिपदा दशाङ्ग-मश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम-आश्रद्वार पग्ग्रिा नामक पंचम अश्मयन 431 4