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________________ श्रवद्वार 46418+ परिग्रह नामक अर्थ + दशमान-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम नामाणि गोणाणि होति तीस, तंजहा–१ परिगहो, 2 संचओ, 3 पयो 4 उवचयो, 5 णिहाणं 6 संभारो, 7 संकरोय 8 एवं आयारी, 9 पिंडो, 10 दव्वमागे 11 तहमच्छिा , 12 पडिबंधा, 13 लोहप्पा, 14 महट्टी, 15 उवगरण, 16 संरक्षणाय,१७मारो, 18 संपाओपायको, १९कलिकरंडो, 20 पवित्थरी, २१अणत्थको, २२संथवो,२३अगुत्ती, 24 आयासो, 25 अविओगो, 26 अमुत्ती, 27 तण्डा, 28 अणत्थको २९अगुआसत्थी, 3 . असंतोसोत्ति विय तस्स एयाणि, एवमादीणि नामधेन्जाणि गुण निष्पन्न तीस नाम कहे हैं. तद्यथा-१ परिग्रह-शरीर उपाधि प्रमुख पर ममत्व, 2 संचय-धन धान्यादिक का एकत्रित करना, 3 चय-धनादिक एकत्रित करना, 4 उपचय-धनादि से उपचय करना, 5 प्रणि धान-धनादि निधान जपान में रखना, 6 संभगे-वारंवार संभाल रखना, 7 मंकरो-पिण्ड बना कर रखना, 8 आदाय-ग्रहण करना, 9 पिण्ड-बहूतों का समावेश करना, 10 द्रव्यसार-धन को सारभूत सपझना, 11 पहाइच्छ-महा तृष्णा, 12 प्रनिबंध-बंधन, 13 लोमात्मा, 14 महा ऋद्धि, 15 उपकरण, 16 संर-* क्षण रक्षा करना, 17 भार, 18 संताप उत्पादक, 19 क्लेश का करंडिया, 20 विस्तार 21 अनर्थ का? कार 22 संचय-परिचय का काग्न, 23 अगुप्त, 24 अयश-खेद का कारन, 25 भवियोग अधर्षी लोक का वांग्छक, 26 अमुक्त लोम, 27 तृष्ण', 28 अनर्थ-परमार्थ का नाशक, 29 आसक्तता / अध्ययन 44 / - +
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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