________________ 117 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूध-प्रथप आश्रवद्वार // पंचम-परिग्रह आश्रव हारम् // जंबू ! एत्तो परिग्गहो पंचमो नियमा गाणामणिकणगरयण महरिहपरिमल सपुत्तदार परिजण दासिदास भयगप्पेसहयगय, गोमहिस उदृखर अयगवेलासीहा सगडरह जाण जुग संदण सयणासण वाहण कुविय धणधण्ण पाण भोयण अच्छायण गंध ___ मल्ल भायण भवण विहिचेव बहुविहीय भरह, नग नगर निगम जणवय पुरवर. दोणमुह खेड कवड मंडव संबह पट्टण सहरस मंडव मंडिय श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य श्री जम्बू स्वामी से कहते हैं कि अहो जम्बू ! पांचवा आश्रव द्वार अथवा चरिम आश्रव द्वार कहता हूं. इम का नाम परिग्रह है. जहां ममत्व भाव है वहां परिग्रह है. इस का वर्णन वृक्ष की उपमा से करते हैं-विविध प्रकार के मणि, सुवर्ण. रत्न, माहामूल्य वाल द्र पुत्र, दारा, परिजन, दास, दासी, भृत्यक, प्रेषक इत्यादि मनुष्य; धोडे, हाथी, बैल, भैम, ऊंट, गद्ध, बरा, गाडर इत्यादि पशु; शिबिक', गाडा, रथ, पालखीं, वाहन, संग्राम योग्य रथ वगैरह वाहन घरवखरा, प्रांजन, धन, धान्य, पानी, भोजन, आच्छादन, वस्त्र, कर्पूगदि गंध, माला, कुंभादि भानन. / भवन यो विविध प्रकार का स्थावर परिग्रह, बहुत प्रकार के पर्वत, नगर, निगम, जनपद, पुर, द्रोणमुख, 4AR परिग्रह नामक पंचम अध्ययन + अर्थ 8+