SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माज 42 84 दशमान प्रश्नव्याकरण मूत्र-प्रथम-आश्रवद्वार 491 रोहिणीएय,अप्णेसुय एवमाईसु बहवे महिलाकएमु सुवंती अइक्वता संगामा, गाम धम्ममूला // 10 // इहलोएतावनट्ठा, परलोएयनट्ठा महया मोह तिमिसंधयारे धोरे, तस थावर सुहुम बादरेसुय, पजत्तमपजत्तकसाहारण सरीर पत्तेय सरीरीसुय अंडज पोतज जराउय रसज संसइम समुच्छिम उभिजओ उववाइएसु, नरग तिरिय देव माणुमेसु, जरामरण रोग सोग बहुले, बहुई पलिओवम सागरोवमाई, अणादीयं अणवदग्गं, दीहमद्धं, चाउरंत संसार कतारं अणुपरियति जीव मोहवसं संनिविट्रा अन्य वहत स्त्रियों के लिये बडे 2 संग्राप हुए है. // 10 // इन्द्रियों के धर्म शब्द, रूप, गंध, रस, और स्पर्श रूप ही मैथून है. यह इम लोक में बंधन कर्ता और पालोक में अनिष्टकारी है. महा मोहमय रूप अंधकार का स्थान है. त्रस, स्थावर, मूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, साधारण शरीरी, प्रत्येक शरीरी अण्डे से उत्पन्न होने वाले, थेली से उत्पन्न होने वाले, जह से उत्पन्न होने वाले, रस से उत्पन्न होने वाले .. सम्मूिर्छिमने वाले, जमीन फोडकर नीकलने वाले, नरक देवलोक में उत्पन्न होने वाले, नरक तिर्यंच .. 3 मनुष्य और देव रूप चतुर्गतिक संसार में जरा, रोग, शोक यों बहुत प्रकार के बहुत पल्योपम. सागरापम: पर्यंत - अनंत काल पर्यंतं, दीर्घमार्ग वाली चतुर्गति रूप संसार कतार में अनुक्रम से वारंवार'. अब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ अध्ययन + +
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy