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________________ + 4.88 दशमङ्ग-प्रश्नव्याकरण भूत्र-प्रथम आश्राद्वार ससिसकल विमल संख गोखीर फेण कुंद गरय मुणालिया धवल दंतसेढी, अखंडदंता, अफुडियदंता अविरलदंता, सुगिद्धदता, सुजायदंता, एगदंत सेढव अणेगदंता, हयवयनिद्वत्ता धोय तत्ततव णजरत्त तलतालु जीहा, गरुलायतउज्जतुंग नासा, अवदालिय पुंडरीयनयणा, विकोसिय धवलपत्तलच्छा, अणामिय चावरुइलकिण्हन्भरायि संठिय संगयायत्त सुजाय भूमगा, अल्लीणप्पमाणजुत्तसवणा, सुसवणा, पीगमंसलकवोल देसभागा, अविरुगाय अब्रह्मचर्य नायक चतुर्थ अध्ययन श्वेत कमल पत्र सपान आंखों है किंचित् नमाया हुवा धनष्प जैसे मनोहर कृष्णवर्ण वाली अभ्रबद्दलो की रेखा जैसी आकार वाली, भ्रकृट हैं. अच्छे लम्बे कान हैं. मांस से पुष्ट कपोल हैं. तत्काल का उत्पन्न बालचंद्र जैसा ललाट है, ज्याषियों के पनि चंद्र समान सौम्य सम्पूर्ण मुख है, छत्र समान मस.क है, लोहे के घन समान ताडिये से वेष्टिन, पर्वत के कूटाकार अथवा आटे के विण्ड समान पर क का उपर का भाग है. आग्न से तपाया हुवा सुवर्ण जैसी रक्त केश उत्पन्न होने की भूमिका [ टाट ] है. शाल्मली वृक्ष के फल सपान निवड, चलाते सुकोपल, स्पष्ट, प्रशस्त, सूक्ष्म पतले लक्षणांत, + मगंधी सुंदर, भुनमोचक रत्न समान कृष्ण, नील समान, काजल सपान, मदोन्मत्त भ्रपर के समुह समान} . 12t..
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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