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भु.सु.
माय ॥ ३ ॥ इहां बेठां कोइ लायने । पावे न आंपाने नीर ॥ भनी तिहां सुवाडने । चाल्यो घर मन धीर ॥ ४ ॥ शतिल छांय पवन करी । सती निंद्रा वश थाय ॥ भाइ बेहन को विरह पडे । ते सुण जो चित लाय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ७ मी ॥ जल्लाकी देशी ॥ श्रोता, तिण अवसर तिण काले क्षिती पुर श्वामीहो ॥ सुणो चित रख ठाम ॥ तिण अवसर तिण काले क्षितीपुर श्वामी हो । राजिन्द्र ॥ श्रोता, विर सेण नामे सूरो राजा गुण धार्म हो ॥ सुणो ० वीरसेण ० राजिन्द्र ॥ १ ॥ श्रोता, चतुरंगी शैन्या सज तिण वार कराइ हो सुणो० चतुरंगी ० राजिन्द ॥ श्रोता, वन क्रिडा करवाने वन माहीं आइ हो । सुणो० वन० राजिन्द्र ॥ २ ॥ श्रोता, मही पती अश्व झपट थी सती कने आवें हो || सुणो० मही० राजिन्द्र ॥ श्रोता सती निंद्रा वश तेहनी खबर न पावे हो ॥ सुणो० सती • राजिन्द्र ॥ ३ ॥ श्रोता, रुप देखी ने नर पती अती मोहवात्रे हो || मुणो० रुप० राजिन्द्र ॥ राजा, मधुर वचन थी सतीने तब जगावे हो ॥ सुणो० मधु० राजिन्द्र ॥ ४ ॥ श्रोता, भाइर करती सती बेठी थाइ हो || सुणो० भाइ • राजिन्द्र ॥ श्रोता, संतोष बचन थी राजाजी ताम बोलाइ हो || सुणो० संतोप० राजिन्द्र ॥ ५ ॥ सुन्दर, आपने चाहीये | ते कृपा करी फरमावो हो ॥ सुणो० आप० नारीश ॥ सुन्दर, चलो मुज मन्दर जिम सुख
खण्ड
१ बेहन