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________________ ज०वि० ५८ | पुत्री तुमकों ही देवूगा । बचन म्हारा पालू ॥ प्राण जावो पण बचन न जावो । lal उत्तम रीति चालू ॥बडा॥१३॥ राम लक्ष्मण वचन पालन । वन में वास कीना॥ हरिश्चन्द्र दारा तनुज बेंच कर । मेहतर घर लीना ॥ बडा ॥ १४ ॥ यों अनेक N/ दृष्टान्त दे भूपत । व्यावन हट करीयो ॥ तब सामान्त कुटम्ब बदल कर । ना । कारो भरीयो । बडा ॥ १५ ॥ सबही वयण सुणी असुन कर । लग्नोत्सव मंडा यो॥ वावनजी को मौकब काजे । द्रव्य अति दीलायो । बडा ॥ १६ ॥ नवरंग । मेहल दीया रेने को । हय गय आदि सारा । उत्तम लम महूर्त देखायो । प्रावो । सजी प्यारा ॥ बडा ॥ १७ ॥द्रव्य तहां सर्व जोगा मिले । बने सज्जन केइ । मिली सहेली मङ्गल गावे । गगन गरजेह ॥ बडा ॥ १८ ॥ वाजित्र बाजे विविधM प्रकारे । वन्दोला फिरता । देख विद्रूप हस्ये बहू कौतकी । केइ अाश्चर्य धरता ॥ बडा ॥ १६ ॥ यों अानन्दे लग्न दिन आया । सजी अति सजाइ । गजारूढ हो । चलीये वावनजी । सुबर्ण वर्षाइ ॥ बडा ॥२०॥ लग्न मंडपे आया भराया।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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