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दोहा ॥ पण यह बचन ने वीसरी । मोहमद छकी कुमार । वीतक वात दाखी !! सहू । अखन्ड निभावा प्यार ॥ ५॥ * ॥ ढाल : मी ॥ मोक्ष पद पावै हो ।
जिनन्द गुण गावतां ॥ यह० ॥ कपट कला देखोरे चतुर वैस्यातणी ॥ टेर ॥ | कामलता निज मातने सरे । कही सगली बात मांउ । अका सुपी हर्षी घणी ।
सरे । ज्यों चधित क्षीर खांड ॥ क०॥१॥ तेह मणीने हरण करण को । उत्सुक Aथयो तस मन । कपट कला केलववा कारण । करवा लागी यतन ॥ क० ॥२॥ । छल छिद्र नित्य देख विजय का । मूशक मंजारी जेम । परन्तु मणी-हाथ नहीं
आवे । धरे चित्त अखेम ॥क०॥३॥ तब समझी हों शार घणोये । मणी रक्खे निज पास । किणरीते मुझ हात ए लागे । करूं कैसो प्रयास ॥ कप०॥४॥ अवसरे नित्य कुमर पास बाइ । भक्ति करे बहु कोउ । कला केलवी वस्य किया तस । कुण करे कपटी होउ ॥ क०॥ ५ ॥ चन्द्रहांस मदिरा तस पाइ। डाली भरम के मांय । क्षिण में प्रवस्य हुवा कुमरजी । तब ही ढिग आय ॥ क०॥