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________________ - २० । ज०वि० ढाल पंचम अमोलक भणी । भागे रसीली कथा मुख ॥ पु० ॥ २१ ॥ ॥ | दुहा ॥ जय जी मन पाणंदिया। पा लाभ अपरंपार । सूता लघु बंधव कने । रही न चिन्ता लगार ॥ १ ॥ महा औषधी प्रभाव से । उपसर्ग न जरा होय ।। निशी सर्व तहां ही रहा । सुखथी कुमार दोय ॥ २॥ प्रात जय जी जागीया।। विजय भणी जगाय । नित्य नियम स्थिरचित कियो । तेतले रवी प्रगटाय ॥३॥ प्रेमातुर जयजी हुई । लघु बन्धव को जणाय । पूर्व सुकृत्य यहां फले । अमूल्य | त्रिवस्तु पाय ॥ ४॥ यक्ष युगल की भक्ति को । कह्यो सर्व विरतान्त । देखाई । तीनों वस्तु ते । विजय भी अति हर्षत ॥ ५॥ ॥ ढाल ६ ट्री ॥ पियाजी थारा चित्त मांहे कांइ वसी ॥ यह चाल ॥ देखोजी भाइ भाइतणी प्रीति । कहां देखिये जग में रीति ॥ देखो० ॥टेर ॥ राजमन्त्र विधि सहित बताया। प्राण के प्रेम अति । अति अग्रह कर तास सिखाया । देने राज क्षीति ॥ देखो० ॥१॥ कपट रहित सो मन्त्र यादकर । करता विचार चिति । राजधणी जेष्ट बन्धव
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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