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________________ ज०वि० मन वस्यो ॥ यह देशी ॥ उत्तम अपमान सहे नहीं। नीच न लाज न प्राय हो लाल । केशरी जावे एक बचन से । श्वान धुकर्या बहु प्राय हो लाल ॥ उत्तम ॥१॥ निश्चय मन महीपति कीयो । मारण में नहीं सार हो लाल । वस्यवृत्ति महारे। करूं । ज्यों न होवे कोई विगाड हो लाल ॥ उ०॥२॥ निजर कैदी कर के रखं । वाहिर न जाने पाय हो लाल । बिना चेतायां विन हुकम से । महारे पास न प्राय IN हो लाल ॥ उ० ॥३॥ फिर किम दुःख देशी मुझ भणी। जचीयो एही उपाय । हो लाल ॥ बोलायो दरवान ने । शक्त हुकम यों फरमाय हो लाल ॥ उ० ॥ । कुमरों ने मेरे हुकम विना । जाने न देना बाहर हो लाल ॥ तैसे न आवे मेरे कने। * वात मत करना जाहर हो लाल ॥ उ ॥५॥ यो पुक्तो वन्दोवस्त करी । निश्चिन्त IN रहे राजान हो लाल । प्राते तात चरण वन्दवा । कुंवर अाया दोडी स्थान हो लाल ॥ उ ॥ ६॥ दरवान रोक्या तत्क्षिण । कहे पूछ अावू इणवार हो लाल । फिर आप अन्दर पधारजो । हुकम कियो दरबार हो लाल ॥ ७ ॥ खेदाश्चर्य
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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