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________________ ज०वि० जयवति १ विजीया २ गुणवन्त जी । जेतश्री ३ भोगनी ४ दीपन्त जी ॥ जयति । १७५ ५ कामलता ६ सोहंत जी । यों नव ही शिव पन्थ वरन्त जी ॥ श्री ॥ ४ ॥ साधु सतियों संग परिवर्या जी । जिनराय कीयो विहार ॥ गाम सीम लग सहू मिली। पहोंचाइ फिर्यो परिवार जी ॥ झुरता गुण गण प्रिती संभार जी। श्राया सब निज २ श्रागार जी ॥ करे धर्म कर्म यथा सार जी। अब संतों सतीयों अधिकार जी॥ श्री ॥ ५ ॥ जिनराज एकान्त स्थानके जी । बैठा सब परिवार ॥ असेवना गृहणा शिक्षा विस्तारी करी उचार जी। जो ज्ञान गुणे प्राचार जी ॥ ते । लीनी सन्त सती धार जी। और ज्ञान पढ्या सूत्र सार जी। फिर करणी में मड्या एकतार जी ॥ श्री ॥ ६ ॥ ज्ञानानन्दि मगन ध्यान में जी। तपे तप घोर द्रढ जाप ॥ ग्राम नगरा अादि विचरता । साहता परिसहा शीत ताप जी ॥ सद् बोधे उपकार अमाप जी। करता तारता भव्यजन तदाप जी ॥ फेलायो धर्म IN/ सत्य थाय जी ॥ बहूते तारे जगसे सापजी ॥ श्री ॥ ७ ॥ श्री विजय जिनराजवी
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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