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________________ इस स्थान पर उसकी स्मृति में उसके पुत्रने महाकाल नामक यह नवीन चैत्य बनाकर उसमें पार्श्वप्रभु की प्रतिष्ठा की थी। कुछ समय મી पश्चात् मिथ्यादृष्टियों ने उस पर शिवलिंग स्थापित कर प्रतिमा को ढँक दिया था। वह मेरी स्तुति से प्रकट हुई है।' यह सुनकर राजा ने हर्षित होकर उस मन्दिर के खर्च हेतु एक सौ गांव दिये और स्वयं ने सभ्यवश्व अंगीकार किया। तत्पश्चात् सिद्धसेन सूरिने बिक्रम राजा के अनुयायी अन्य अठारह राजाओं को प्रतिबोधित कर सम्यक्त्वथारी बनाए । उनके गुण से प्रसन्न होकर विक्रम राजा ने सूरि के बैठने के लिये सुखासन भेंट किया । उसमें बैठकर सूरि सदैव राजसभा में जाने लगे। इस बात का पता इनके गुरू वृद्धबादी को लगा । इस पर उन्हें प्रतिबोध देने के लिये वृद्धवादि गुरु उज्जयिनी में पहुँचे । वहां सूरि निरन्तर अत्यन्त व्यस्त रहते थे अतः गुरुको उनके पास पहुँचने का अवसर नहीं मिला। तब वे गुरु कहार बनकर उपाश्रय के द्वार पर खडे रहे । जब सिद्धसेनसूरि सुखासन में बैठकर राजद्वार जाने के लिये निकले तब वृद्धवादी ने एक कहार का स्थान ग्रहणकर पालखी उठाई परन्तु वे बहुत ही वृद्ध थे इसलिये उनकी चाल मंद थी । यह देखकर सिद्धसेन बोले- 'भूरिभार भराकान्तः स्कन्धः किं तव बाघति ?' (हे वृद्ध ! अत्यन्त बोझ के समूह बोझिल तेरा tara क्या तुझे पीड़ा पहुँचा रहा है ? ) यहां 'बाधते' आत्मनेपद का रूप बोलना चाहिये जिसके बजाय 'बाघति ' परस्मैपद का अशुद्ध रूप सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी बोले ! उसे उद्दिष्ट कर वृद्धवादी सरि बोले - 'न तथा बाधते स्कन्धो यथा वाघति बाघते - हे सूरि । तुम्हारे द्वारा प्रयुक्त वाघति का प्रयोग जितना पीडा पहुँचाता है- उठना यह मेरा स्कन्ध पीडा नहीं पहुँचाता यह सुनकर अपनी गलती मानकर सिद्धसेन दिवाकर सरिजी चौंके और गलती निकालने वाले उनके गुरु ही हैं ऐसा जानकर में तुरन्त पाळखी में से नीचे उतरे और गुरु के चरणों में गिरे । गुरु ने उन्हें प्रतिबोध देकर गच्छ में शामिल किया । थमां पंचामृतना उमरी तथा थानी १ ३. श्रीण पेंडा लेना. કલ્યાણ મન્દિર महामन्त्र पूनविधिः 30 3000 300 300 300 300 300-300-3000 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ये सिद्धसेन दिवाकर, सूरिजी महाकवि हुए हैं। सन्ले ****************** ॥२२१ ॥
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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