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________________ भीष्टि श्रीदे० ॥ विहु न फरिओ मंतो ॥४२॥ तो रना सकारिय संमाणिचा विसजिओ जोगी। कुद्धेणं आणतो निम्बिसओ झति सिरिगुतो | चैत्यश्री ॥४३॥ दुस्सहवणदुट्ठदेहो गयपुरपत्तो कहंचि तं जोगिं । दटु सुरुढो निठुरछुरीइ लहिउँ छलं हणइ ॥४४॥ पत्नो निहणं जोगी| धर्म० संघाचारविधौ । पलायमाणो इभो तलवरेणं । पंघिय कारणियाण समप्पिो तेहि पुट्ठो य ।। ४५॥ साहइ मे एस वेरी चिराउ पत्तो विणासिओ वेणं । तो कारणियनरेहिं वुत्तं जहर्षिय इमं तहवि ॥ ४६॥ विजंते. नरनाहे नायवियारंमि तह फुरतमि। सहसाकरणमजुत्तं सेसं॥४०४॥ पिहु किं पूण विणासो।।। ४७॥ दोसाण संभवाविहु बणस्त नुचिओ परुप्परविणासो । सच्छदं चिय इहरा अमाणुसं जायइ जयंपि ॥४८॥ जइ रे तुहेस देरी ता पान! कहेसि कीस नो अम्ह ? । सयमेव कुणसि दंडं एवं सह तसि दोसिल्लो ॥४९॥ तो दंडपासिपुरिसा बहुं विडंविय पुरे भमाडित्ता। संझाए उलंबिय तरुमि पत्ता सठाणेसु ॥५०॥ दिनवसेणं तुद्दो पासो सो निरPAIडियो महीबढे । पुण पावियचेयगो नट्टो तनो पएमाओ ॥५१॥ एगमि वणनिगुंजे भयभीओ जाव पविसए एसो। सजलाय| परस्स पुरिसस्स ताव वयणं इमं सुणइ ॥५२॥ जीववहअलिअभासण परधणहरणं परिस्थिपरिहासो। निसिभ महमंसाण भक्षणं मजपाणं च ॥५३॥ रमणं दुरोदरेणं संगो जूयारवेसमाईहि । साहुवसणंमि तोसो रायाइविरुद्धमायरणं ॥५४॥ इचाइ यावपुंज काउं जीवा वयंति कुगईए । इत्तो पुणो नियत्ता लहंति सम्मापवग्गसुहं ॥ ५५ ॥ इस सोउ इमो चिंतइ अहो मुणी सुन्दरं पदइ किंपि । इचो य तत्य पचो नरभासामासिरो कीरो॥५६ ।। पुट्ठो तेषं स मुणी पहु! पसिय कडेसु मा पुवमवं! अाइमोवि जयपुरे वरुणो नामासि इन्भसुओ॥५७॥ तेणऽनदिने पुट्ठो सागरचंदो गुरू कहसु भंते ! | समणाण सावयाण य किं मूलं सन्न-|| किचेसु ? ॥५८॥ सामाइयाइछन्विहमावस्सयमिय गुरुाहें कहिए सो। पुच्छेइ किनिमितं एवं कीरइ ? भणड.सूरी ॥ ५९॥ सावज CURImagimm ॥४०४॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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