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________________ श्रीविजयनृपकथा धर्मसी का मा निषिद्धन वृदिमणिसिं ॥ श्रीदे. सुबुद्धी विसुद्धचउबुद्धिमणिसिंधु ॥ ८३ ॥ पडु दुगमवि काहमिमं जहऽणत्थखओ न यावि जीववहो । इय पुण मचिवेणुत्ते चैत्यश्री- मणइ निवो घडह कहमेयं ? ।। ८४ ।। साहइ सचिवो मामिश्र! सिबउ रजंमि इह धणयपडिमा। सत्ताई सेविस्सइ तंपिव तमिमो धर्म० संघा-A जणो सबो ।।८५।। दिवणुभावा दुरिअं न होइ जइ कंचणं सुरहि तत्तो। तन्भावे पडिमक्खय पहुरक्खा नविय जीववहो ॥८६॥ चारविधौ जुत्तंति ठविउ रजे तं तह कारेत्तु चेइएमु महं । कयसेयं सेयंसं देवं वंदर इय थुईहिं ।। ८७ ।। "अस्सेयदेवि दलियंचमुत्ती, सेजंसमेयं मुयधम्मकीतिं । करिसमेयं जमिहं अविजाणंदोलगिण्हपि तमज ! कुजा (१)॥ ८८ ॥ प्रागं शय्याधिष्ठात्रीमश्रेयस्कारिणी दुष्टदेवी दलयित्वा-तच्छग्योपविशनेन वित्राम्य अंवेव माता-मूर्तिर्यस्य गर्भस्थितत्वात् मोबमूर्तिः अर्य!-स्वामिन् ॥ जे धम्मकित्तिमिवसंतिविमुत्तिविजाणंदप्पयाणपणिहाणविहाणसजा। देविंदविंदपरिविंदपयारविंदा, ते मुत्तिजुत्तिमिह दिंतु जिणिंदचंदा (२) ॥ ८९ ॥ तेसिं सप्पुसधम्मकीत्तियमिणं देविंदचक्त्तिणं, संपुण्णेसरियाइसाहणगुणं लोगुत्तमुक्तिणं । विजाणंदपहाणमनिपयवीसंपायणं सबया,झायंतीह जिणिंदचंदवयणं जमवया सबया (३)॥९०॥ शष्पं-बालवणं । निचं देविंदमूरी जियमइविहवा जे मुयंगीइ नाम, झायंता हुंति सत्ता तमतिमिरमिया धम्मकिचिल्लयं तं । ज पारीणत्तणंभो धिवियइ अइरा सबसत्थुत्तमाणं, विजाणंदे व एमा जिणवरवयणे भत्तिराणं नराणं (४ ॥९॥" चिइवंदणाइ सेयं इय काउं जाइ तिविहसेयमई। सत्ताहपोसहं कुणइ दम्भसंथारगो राया ॥१२॥ भणियं च वसुदेवहिंडीए-सिरिविजओऽवि दम्भसंथारोवगओ सत्तरत्तपरिचत्तारंभपरिग्गहो वंभयारी संविग्गो पोसहं पालेइ"ति, वदृति मंतिणो नियनिवंव चेसमणजक्खपडिमाए। नाहंतरेऽवि जंति हि धीमंतो सामिखेमत्थं ॥९३॥ पंचपरमिहिवरमंतमुमरगापमिइधम्मझाणमि । अल्लीणो नरनाहो मुहेण बोलेइ दिवसाई ।।१४।। अह सत्तमंमि दिवसे मज्झण्हे | MANNERAIB Super A ॥११॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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