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________________ Mammmswami चैत्यश्री श्रीविजयनृपकथा HDPARIHANDARIRICIEN श्रीद नाणं जं अवमिचारि न अन्नत्थ ।।५०॥ अट्ठविहंपि निमित्तं नरिंद! जाणामि अवितहं एयं । लाभारलाभ२ सुहा३ सुह४ जीवियर Dमरणद जय विजयत्ति८ ॥५१॥ लक्खण१ दिव्बुप्पायं३ तलिक्ख४ भोमं५ ग६ वंजण७ सरं च८ । पउम१ रुयणु२३ तडि:- धर्म संघा- कंप५ फुरण६ तिलग७ सऊणाई८ तयं ।।५२।। संपत्तजुवणोऽहं विहरतो अनया गओ नयरे । पउमिणिसंडमि हिरण्णलोमिया चारविधौ | पिउसिया तत्थ ॥५३॥ तीइ सुया चंदजसा पुचि दिन्ना उ सा मह तयं च । दळुरागाउ मए चइऊण वयं परिणयाऽऽसी ॥५४॥ | संपइ सकजसिद्धिं नाउ निमित्तेण इममणत्थं च । इह आगओ नरेसर! जं जुत्तं तं करिज लहुं ॥ ५५ ॥ अह मंतिजणे तक्खणनिवरक्खणआउले भणइ एगो। ठाउ पहू सत्ताहं महन्नवे नावमारुहिउं ।।५६॥ विइओ भणइ न एवं रुच्चइ मे तत्थ जं पडंति तया। को वारिही? वियद्दे ता गंतुं चिट्ठउ गुहाए ॥५७॥ जेण इमाए ओसप्पिणीइ सुम्मइ कयाइ नहु तत्थ । विज्जुनिवाओ नागिंद| दिन्नविजाणुभावाओ ॥५८ ।। तइओ भणइ इमंपिड जंकिंचि जओ अवस्सभावी जो। अत्थो जत्थ व तत्थ व न अन्नहा होइ इह नायं ।।५९॥ इह भरहे विजयपुरंमि रुद्दसोमो दिओपिया तस्स । जलणसिहा ओवाइयसयजाओ नंदणो उ सिही ॥६॥ तत्थऽनया निसियरो अइकूरो कोऽवि आगओ सो उ। बहुमाणुमाणि हणिउं थो मुंजइ चयइ बहुअं॥६१। मणिओ निवेण | सामेण सो मुहा कि बहुं हणसि मणुए। सीहाइणोऽवि पसुणो हकति छुहिआजमेगजिअं॥६२|| तुहविक्किकं दाई माणुसमणिसंति | सोऽवि मन्नइ तं । कारइ नियोऽवि नयरे पइदिह नरनामगोलाई ॥६३।। कुमरिकरेणं गोलो कड्ढिजंतो उ निस्सरइ जस्स । जाइ स पुररक्खत्थं भक्खत्थं रक्खसस्स नओ६४ानिस्सरिओ गोलो सिहिदिअस तस्सऽनया य तबाउं । हा वच्छ ! तुह विणा कह होहमई ? रुअइ तम्माया ॥६५॥ अह तग्गिहमासने एग भूयगिहमत्थि सुमहंनं। तं मवणदुस्सवं तीइ रोइ सुणिय ते भूया ॥६६॥ IRADPAL
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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