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________________ | बन्धुदत्त कथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघा- चारविधौ ॥२३॥ HIBPM संकाए । बंधू समाउलो तेहिं करेंडगोवणपरो दिवो ॥१९२।। किमिणति नेहिं पुच्छिय तुम्ह भया नियधणं ठण्मुत्ति । जता सकरण्डा नीया ते मंतिपासंमि ॥१९३।। मुत्तु परिखिय अन्ने पहिए मंती भणेइ है के सेकतुचा किमिणं तिय? ते चिंति अवंतिओ पचा ॥ १९४॥ चलिया मो पुत्वजियधणमहुणा गहिय लाडदेसंमि । मती मगर जब इस कहे६ भो लहु किमित्य थि: ॥१९५|| बुदिया तमजाणंता भणंति ते चारिओ इमो जद ता! उग्घाडिय जोरजउ नम्बाहइ तो सय मंती ॥१९६॥ पिच्छिय करंटमाझे निरनामंकियविभूसणे सरह । चिरनदृधणाणमिणं निहीकर नृणमेहि ॥ १९७१। एहि ताडिएहिं चोरा लहिहिति चिंतिउं सत्थो । सबो घराविओ सो नरेहि ताडाविया ते उ ।। १९८॥ गादप्पहारविहुरा भणंति ते मो समागया कल्ले । सत्धेण जइ न एवं मारिज वियारि ताण ॥ १९९ ।। अह बंधुदत्तमुधिस्स ठाणपुरिसो पयंपए एगो। सत्थे इमंमि पंचमदिणमि दिहो इमो खलु मे ॥२००! जाणसि इमंति पुट्टो सस्थाहो मंतिणा भणइ सत्थे । एरिसए कप्पडिए वहमाणे जाणई को णु? ॥२०१।। तं सोऊणं कुविओ मंती ते भाइणिजमाउलए । नरयावाससमाणे कारागारंमि पखिबई ॥२०२॥ तत्थ य गिरिथलनयरे काराएँ ठियाण तेसि दुहियाणं । माउलभाणिजाणं बोलीणा कहवि छम्भासा ।। २०३ ॥ पत्तो महाभुयंगो निताएँ आरक्खगेहिं अह तइया । परिवायगो सदधो पंधिय मंतिस्स उवणीओ ॥२०४॥ परिवायगाण न धणं एरिसमिय तकरो धुवं एसो। इय निच्छिऊण मंती आइसइ तयं वहनिमित्तं ॥२०५।। नीयंतेण वइत्थं अणुसयमाणेण तेण चिंतित्ता । होइ न यन्त्रहा रिसिभासियंति पयर्डपितं | भषियं ।। २०६ ॥ तं सोउ भणइ मंती किमिणं ? स भणइ किमित्थ मे कजं । म मुतुमिह न अनो चोरो वा कुणह जं इटुं ॥२०७।। नवरं सर्व गिरिनद्दारामाईसु अस्थि हरियधर्ण । तं अप्पिय धणियाणं निहणिजद मं तओ तुम्मे ॥ २०८। ओमंति ARATOPAN Maithi LA ॥२३॥ m
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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