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________________ श्रीदे MPRIMINS सुमतिकथा thi. in चैत्य श्री धर्म संघा चारविधौ | maratih कंदतो अच्चइ सयावि ॥४॥ अह उडामरडामररोगदुक्खोहतावनवमेहो। चउतीसाइसयनिहीं समोसदों तत्थ पासजिणो॥५॥ अहमहमिगाइ नियनियरिद्धिबलजुओ पुरीजणो सयलो। पासपहुपायपंकयवंदणवडियाइ संचलिओ॥६॥ सयल्यहिवाहिबिसहरविसविहुराण जणाण अमयसमं । पासजिणं तत्थागयमायनिय झत्ति मंतीवि ।।७|पवरतुरंगारूदो नियपाणिपुडेण धरिय तं बालं । पाइड पहुपयजुअले अणप्पमाहप्पकुलभवणे ॥ ९ ॥ जलिरजलणा जउटुंत्र अहिकुलंपिव सुपनदंसणओ। नटुं पहुप्पभावा सिसुणो लहु रोगजालं तं ॥१०॥ तं दठ्ठ महच्छरियं बालं अग्गे करेवि सचिववरो। एगग्गमणो पहूणो देसणं निसुणए एवं ॥ ११ ॥ तथाहि-जीवो अणाइकम्मयतणुजोगउ दुढ दुट्ठवावारो । दुस्सहदुहदंदोलि सहेइ नरए अकयसुकओ ।।१२।। गुरुभारवहणसीउण्हवासधारानिवायपमुहमिहं । जं अणुहवंति दुक्खं तिरिया तं सवपच्चक्खं ।। १३ ।। बहुआहिवाहिमाणावमाणदारिदमियमणाणं । विसणसानडियाणं मणुआणं नाम कि सुक्खं? ॥१४॥ असरिसअमरिसईसाविसायहासाइदोसभवणेसु । अमरेसुवि अइफारो दुहसंभारो वियंभेइ ।।१५।। तिरिनरअमरभवेसुं विसयासेवाइ जो सुहाभासो । सोदि अपत्यं पच्छा दितो बहुदुसहदुहनिवहं ॥१६॥ भणिअंच-"कह तं भन्नइ सुक्खं सुचिरेणवि जस्स दुक्खमल्लियइ । जं च मरणावसाणे भवसंसाराणुबंधिं च ॥१७॥ ता चउगइभवदुहदारुदाहदहणं करेह जिणधम्मं । दुविहंपि ससत्तीए ओसहमिव कम्मरोगाणं ॥१८॥ तो मंती तुट्ठमणो गिहत्थधम्मं गहेवि तंबालं। पहुपाएसुं पुण पुण पाडेवि गओ सठाणंमि ॥१९॥ सिरिपासदसणाओ रोगायंका इमस्स नणु नट्ठा। तत्तो सुदंसणो | सो बालो वुच्चइ पुरजणेणं ॥२०॥ भुवणस्सवि भद्दाई पकुणंतो भद्ददंतिसरिसगई। भदिलपुराउ अनत्य विहरिओ पासजिगनाहो |॥२१॥ ते मंतिमंतितणया बहुसो मुणिसंगमेण संजाया । लट्ठा गहियद्वा विणिज्ञियहा जिणमयंमि ।। २२ ॥ अह कइया निय- a nian HINDIHIN L ith mman D realtimes ॥१११॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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