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बीदे. पैत्व श्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥९ ॥
विदिनसम्वस्से । गरुआण चलणसेवा कयावि नहु निष्फला होइ ॥५२॥ अविय-पहुणो अत्थिन अत्थि वइय चिंता नो कयादि | नयिविन कायहा। किंतु विहेया सेवा सयकालं सेवगजणेण ॥५३॥ सेवह गंतुं भरहं सामिस्स य नंदणोवि सामिव । एवं पुणोवि धरणेण
मिवृर्ष पमणिया ते उदाहु इमं ॥ ५४ ॥ वच्छरियमहादाणेण पूरिउं सयललोयआसाए । पयलग्गधूलिलीलं जइवि चएसी य रजभरं | ॥५५॥ बटुंतो छउमत्थावत्थाए तहवि छउमपरिमुको । दुत्थियजणपस्थिअत्थसत्यचिंतामणी एसो ॥५६॥ ता रहिय सामिमेरिसमलं सामि वयं नहु करेमो । को कप्पपायवं पाविऊण सेवेइ करीरतरं ॥१७॥न य अनं पत्थेमो तिहुअणसामि इमं पमुत्तूण। किंबप्पीहो पीहइ जलधारं मृत्तु अनपि ।।५८॥ भई भरहाईणं हवेउ किं तुह इमीइ चिंताए । जमियाउ होइ पहुणोतं होउ परेण किं अम्ह? ॥५९॥ अवि-होइ थिराणं लच्छित्ति जिणसुई सुबए तओ अम्हे । होमो न उस्सुया जह मुद्धो कागीकयमऊरो॥६०॥ तहाहि-रह कोइ नरो आजम्म निद्धणो बालकालमयपियरो । भूरिविसएसु भमिओ विभूइहेउं न सा पत्ता ॥६१।। मणियं चदूरं वच्चइ पुरिसो हियए धरिऊण सयलसुक्खाई । तत्थवि पुवकयाई पुढगयाई पडिक्खंति ॥६२॥ कमि अरण्णे चिरजिष्णदेउले कोहणेण अह जक्खो। आराहिओ पयंपइ बहबवासेहिं तं सुमिणे ॥६३॥ भो पइदिगमिह गमिही मुत्तु सिही कणगपिच्छमिकिकं । ताणि य कमेण गहिउँ पभूयभूई भवेज सुही ॥६४॥ किमिणंति व बुद्धो सो जा चिंतह ता समागओ मोरो। सो सुचिरं नचिय कणयपिच्छमिकं विमुतु गओ॥६५॥ इय कइसु दिणेसु गएसु चिंतए स इह किच्चिरं वसिमो। ता लहु एयकलावं एगसरं गहिय जामि गिहं ॥६६॥ तो बीयदिणे मुद्धो पिच्छकलावं स नच्चिए मोरे । जा गिहा ता सइसा गओ सिही वायसीहोउं| ॥६७॥ अतः पठ्यते-अत्वरा सर्वकार्येषु, त्वरा कार्यविनाशिनी । त्वरमाणेन मूर्खण, मयूरो वायसीकृतः ॥६॥ तो सो विल-D॥१४॥
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