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________________ NED श्रीदे. धम्मो ॥१७२|| अहस गहद गिहिधम्म सम्म समत्तमूलमाजीवं । बभं छहतवं तह तो मुणिणा एवमणुसिट्ठो॥१७३।। अरिहंतु अग्रपूजाया तीचिय देवो मुणिणुचिय सीलसंगया गुरुणो । जीवदयश्चिय धम्मो निच्चं चिंतिज नियचित्ते ॥१७४।। दुहदहणसजवुढि असेससत्तो-10 हरिकूटधर्म संघा- हदिनमणतुढि । सुमरेजेगग्गमणो मंतं पिव पंचपरमिट्ठिं ॥१७५॥ उज्झसु कसायवससंभवाई दुकम्मविलसियाई लहुँ। सदहण संबंध: चारविधौ नाणसारं भावेसुय भावणापडलं ॥ १७६ ॥ तोसगओ तो स गओ नमिऊण मुणिं सह गएण गओ। नाउमिणं सत्थजणोवि ॥७९॥ | लेइ संमाइ जहजोग्गं ॥१७७॥ वेरग्गगओ जयणाइ गच्छिरो पारणं कुणइ स गी । परिसडियपंडुनीरसभग्गमिलाणेहि पत्तेहिं ।। |१७९॥ दुक्करतवायावणपरायणो सो कयाइ गिम्हमि । अप्पजले बहुपंके सरे गओ पाणियं पाउं ।। १७८ ॥ अप्पत्तजलो पंके खुत्तो जाणित्तु तवकिलिनोऽहं । अनलो उत्तरिउमिउत्ति वजए सव्वमाहारं ॥१७२।। अह सिरिभूइ भुयंगो स अग्गिदइटो तया मरिय जाओ । कोलवणो चमरगवो दवम्गिदड्दो तओ मरि॥१८०।। सल्लइवर्णमि कुक्कुडसप्पो जाओ तओस तं दटुं। अणसणगयं गयं जायमच्छरो डसइ कुंभमि ॥१८॥ विसवेगविहुरियंगो वोसरिर सन्चपावठाणाई । खमियजिओ मण्णंतो अमोऽहं अनमंग मे ॥१८२॥ इय सुहझाणो नवकारतप्परो मरिय सुक्ककप्पमि । सिरिनीलविमाणे सतरअयरआऊसुरो जाओ॥१८॥ तद्दन्तमुत्तिआई गहिऊण सिआलदन्तवाहेण । परिचियगुणपीईए धणमित्तवणिस्स दिनाई ।।१८४॥ तेणवि तुहप्पियाई मित्तीह सलक्खणत्ति विनिउत्ता । दन्ता निवासणे मुत्तिाई चूलामणमि तए ।।१८।। एसा संसारठिई सोगट्ठाणेवि हबह जं तुड्डी। जम्मतरगयपिउणो देहावयवेऽवि भुत्तण ॥१८६।। स कयाइ वागुरेणं कुकुडसप्पो विणासिओ दुहिओ । सत्तरअपराउ पंचमपुढवीइ जाओ नेरइओ ।।१८७।। होही अमरो नवमे गेबिज सीहचंदरायरिसी। इगतीससागराऊ मुविमाणे पीइकरनामे ॥१८८॥पोसहपडिवत्र
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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