SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्प० ॥६१॥ असित्थे नो चेव णं ससित्थे, सेविय णं परिपूए नो चेव णं अपरिपूए, सेविय णं बारसो परिमिए नो चेव णं अपरिमिए, सेविअणं बहुसंपन्ने नो चेव णं अबहुसंपन्ने ॥२५॥ वासावासं पजोसविअस्स संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोअणस्स पडि-IN गाहित्तए पंच पाणगस्स, अहवा चत्तारि भोअणस्स पंच पाणगस्स, अहवा पंच भोअणस्स चत्तारि पाणगस्स । तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायणमित्तमवि पडिगाहिआ सिया, कप्पइ से तदिवसं तेणेव भत्तटेणं पन्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दुचंपि गाहावइकुलं भत्ताए। वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२६॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ || है निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्तघरंतरं संखडिं संनियट्टचारिस्सा इत्तए, एगे एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेण सत्तघरंतरं संखडिं संनियट्टचा-31 रिस्स इत्तए, एगे पुण एवमाहंसु-नोकप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेणं संखडिं संनियट्ट * ॥६१॥
SR No.600261
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy