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शब्दार्थ
विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 873
॥९॥ पु० पृथ्वी काया को आ० आहार क. कर्मव० वर्ण लेश्या ज. जैसे णे. नारकी पु०पृथ्वीकाया भं० भगवन् स० सर्व स० समवेदना वाले हैं. हा स० समवेदना वाले से वह के० कैसे गो० गौतम पु. 300 पृथ्वीकाया स० सर्व अ० असज्ञि अनि रविना वे. वेदते हैं पे. वह ते. इसलिये पु. पृथ्वीकाया भं. भगवन स सर्व स० समक्रियावाले. हं. हांस सबक्रिया वाले से वह के• कैमे पुल पुथ्वी काया गो009 | गौतम स० सर्व मा० मायी मि० मिथ्यादृष्टि णे निरंतर पं० पांचक्रिया क करते हैं आ• आगंभिकी की
जहा जेरइयाणं, पुढविकाइयाणं भंते सव्वे समवेदणा? हंता समवेदणा से केणटेणं भंते सव्वे समवेयणा ? गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे असण्णिभूया, अणिदाए वेदणं वेदेति सेतेण?णं । पुढविकाइयाणं भंते सव्वे समकिरिया ? हंता समकिरिया। सेकेण.
टेणं भंते पुढविकाइया ? गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे माईमिच्छद्दिट्ठी ताणंणेयकाया को आहार, कर्म, वर्ण, व लेश्या नारकी जैसे कहना. अहो भगवन ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समवेदना वाले हैं? गौतम सब पृथ्वी कायिक जीव समवेदनावाले हैं. अहो भगवन !किम तरहसे वे सब समवेदना वेदते हैं ? अहो गौतम ! सब पृथ्वीकायिक असंही भूत होने से निर्धार विना वेदना वेदते हैं परंतु ये कर्म पहिले के उपार्जित हैं वैसा जाने नहीं इसलिय अहो गौतम ! सब पृथ्वी कायिकजीव समवेदना वेदते हैं. अहो भगवन् ! सब पृथ्वी कायिक जीव सरिखी क्रिया वाले हैं. ! हां गौतम वे सब सरिखी।
पहिला शतक का दूसरा उद्दशा g
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