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शब्दार्थ * ० यह अर्थ स० समर्थ णे. नारकी च० चार प्रकार के अ० कितनेक स० सम आयुष्यवाले स.
समापन अ. कितने स. सम आयुष्यवाले वि. विषमो उत्पन्न अ कितनेक वि. विषम आयुष्यवाले स० समोत्पन्न अ० कितनेक वि. विषम आयुष्यवाले वि० विषमत्पन्न ।। ८॥ अ० असुरकुमार भगवन स० मर्च स० सम आहारी स० सर्व स.. सम शरीरी ज. जैसे णे नारकी त० तैसे भा० कह
णोइणटे सम?। सेकेणट्रेणं भंते एवं बुच्चइ ? गोयमा! णेरइया चउब्धिहा प०२० अत्थे गझ्या समाउया समोववण्णगा, अत्थेगइया समाउया विसमोववण्णगा, अत्थेगइया । बिसमाउया समोववण्णगा. अत्थेगडया विसमाउया विसमोववण्णगा. सेतेणदेणं
गोयमा ॥८॥ असुरकुमाराणं भंते सव्वे समाहारा सव्वे समसरीरा ? जहा णेरइया एक साथ नहीं उत्पन्न होते हैं कितनेक विषम आयुष्यवाले हैं और एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं। कितनेक a विषम आयुष्य वाले हैं और विषम उत्पन्न होने वाले हैं, इसलिये अहो गौतम ! सब नारकी एक सरिखे
आयुष्य व एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! असुरकुमार जाति के सब देवता क्या इसरिखे आहार वाले व सरिखे शरीर वाले हैं ? अहो गौतम जैसे नारकी का कहा वैसेही यहां कहना. विशेष इतनाही कि असुरकुमारको भवधारणीय शरीरकी अवगाहना जघन्य अंगुलका असंख्यात वे भाग उत्कृष्ट सात हाथकी और उत्तर वैकेय जयन्य अंगुलका असंख्यात वा भाग उत्कृष्ट एकलक्ष योजनकी.जो महाशरीर वाले होते
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4080%
पहिला शतक का दूसरा उद्देशा.
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